MS सुब्बुलक्ष्मी जिनके नाम पर है MS ब्लू रंग: पं. नेहरू ने इनसे कहा था- आपके सामने मैं मामूली PM हूं; गांधी जी भी थे इनके फैन

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18 मिनट पहलेलेखक: ईफत कुरैशी

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1929 में 13 साल की एक शर्मीली बच्ची ने साउथ की ट्रेडिशनल सिल्क साड़ी पहनकर मद्रास म्यूजिक एकेडमी के मंच पर तमिल गाने मारागाथा विदिवू गाना शुरू किया। कम इंस्ट्रूमेंट्स के बीच सुनाई दे रही उसकी आवाज में वो जादू था कि आगे जाकर वही बच्ची देश की सबसे बड़ी सिंगर बनी। पद्मश्री से लेकर भारत रत्न तक, ऐसा कोई नामी अवॉर्ड नहीं जो इनके नाम ना हो। आवाज में वो आकर्षण था कि महात्मा गांधी और पं. जवाहरलाल नेहरू भी इनके प्रशंसकों में से एक रहे। नीली साड़ी इन पर इतनी जंचती थी कि इनके नाम पर ही उस रंग का नाम एमएस ब्लू रख दिया गया।

आज की अनसुनी दास्तानें में कहानी भारत की महान सिंगर एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी की…

एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी उर्फ कुंजम्मा का जन्म 16 सितंबर 1916 को मदुरै (तमिलनाडु) में हुआ था। उनकी मां शानमुकावादिर अम्माल देवदासी समाज का हिस्सा थीं जो वीणा बजाती थीं और पिता सुब्रमण्यम अय्यर एक सिंगर। उनकी दादी अकम्मल भी एक मशहूर वॉकलिस्ट थीं। गाने का गुण सुब्बुलक्ष्मी को विरासत में मिला था। मां ने उनकी ट्रेनिंग मशहूर पं. नारायण राव व्यास से करवाई और महज 10 साल की उम्र में उन्होंने पहली रिकॉर्डिंग की।

13 साल में दी पहली परफॉर्मेंस

म्यूजिक करियर के शुरुआती सालों में सुब्बुलक्ष्मी मां की स्टेज परफॉर्मेंस के दौरान उनका साथ देते हुए भजन गाया करती थीं। उनकी पहली परफॉर्मेंस 1929 में मद्रास म्यूजिक एकेडमी के मंच पर हुई, तब वो महज 13 साल की थीं। ये एकेडमी अपने सख्त नियमों के चलते पहचानी जाती थी, जहां उम्र को लेकर काफी पाबंदियां थीं, इसके बावजूद सुब्बुलक्ष्मी की आवाज के आगे एकेडमी ने अपना ट्रेडिशन तोड़ते हुए इतनी कम उम्र की सिंगर को गाने का मौका दिया था।

उस समय सुब्बुलक्ष्मी अरियाकुड़ी रामानुज अयंगर के लिए गाती थीं, जो अचानक बीमार पड़ गए थे। अयंगर के बीमार पड़ने पर सुब्बुलक्ष्मी को मजबूरन उनकी जगह गाना पड़ा था। उनकी आवाज सुनकर नामी गायक कराइकुड़ी संबासिवा ने कहा था कि सुब्बुलक्ष्मी के गले में वीणा है।

मिट्टी का घर बनाते हुए गंदे हाथों से दी थी पहली परफॉर्मेंस

द वायर को दिए एक इंटरव्यू में सुब्बुलक्ष्मी ने बताया था कि जिंदगी की पहली परफॉर्मेंस देने की उन्हें कोई खुशी नहीं थी। बचपन में सुब्बुलक्ष्मी को मिट्टी के घर बनाना पसंद था। एक दिन वो घर बना ही रही थीं कि कोई उन्हें उठाकर सीधे मंच पर ले गया।

स्टेज पर ही उन्होंने अपने मिट्टी से सने हाथ अपने स्कर्ट से पोंछ लिए। उस समय मंच पर उनकी मां करीब 50-100 लोगों के सामने परफॉर्म कर रही थीं और वो चाहती थीं कि सुब्बुलक्ष्मी भी चंद गाने सुनाएं। सुब्बुलक्ष्मी ने बेमन से गाना गाया तो तालियों की गूंज उनके कानों तक पहुंची जरूर, लेकिन मन में बस दोबारा मिट्टी का घर बनाने का ख्याल चल रहा था।

एक आर्टिकल से मिला जीवनसाथी

उस जमाने के मशहूर पत्रकार टी. सदाशिवम ने 1936 में हुई सुब्बुलक्ष्मी की इस परफॉर्मेंस के बाद तमिल वीकली मैगजीन आनंदा विकातम में फ्रंटपेज आर्टिकल लिखा, जिसके बाद उनके कॉन्सर्ट में भारी भीड़ पहुंचने लगी। टी. सदाशिवम के पास यंग उभरते सिंगर्स पर लेख लिखने की जिम्मेदारी थी। इस सिलसिले में उनकी मुलाकात सुब्बुलक्ष्मी से हुई थी। एक इंटरव्यू के बाद ही दोनों में दोस्ती बढ़ गई और सुब्बुलक्ष्मी ने सदाशिवम से शादी करने का मन बना लिया।

सदाशिवम की मदद से फिल्मों में आईं सुब्बुलक्ष्मी

सदाशिवम जानते थे कि सुब्बुलक्ष्मी का हुनर सिर्फ मंच तक सीमित रहने के लिए नहीं है। उन्होंने अपनी पॉलिटिकल और फिल्म इंडस्ट्री की जान-पहचान की मदद से पत्नी का परिचय तमिल फिल्म इंडस्ट्री से करवाया। फिल्ममेकर के. सुब्रह्मण्यम से सिफारिश कर सदाशिवम ने सुब्बुलक्ष्मी को फिल्म सेवासदन में लीड रोल दिलवाया। 1938 की ये फिल्म जबरदस्त हिट रही और सुब्बुलक्ष्मी साउथ का बड़ा नाम बनकर उभरीं।

10 करोड़ बार सुना गया है सुब्बुलक्ष्मी का भजन विष्णु सहास्त्रनामम

एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी द्वारा गाया हुआ भजन विष्णु सहास्त्रनामम को यूट्यूब पर 10 करोड़ बार सुना जा चुका है। वहीं भज गोविंदम को 17 मिलियन और श्री वेंकटेश्वरा सुप्रभातम को 47 मिलियन बार सुना गया है।

दो बेटियों के पिता सदाशिवम से परिवार के खिलाफ जाकर शादी की

जैसे ही दोनों के रिश्ते की खबर मां को लगी तो घरवालों ने आपत्ति जताई। मां नहीं चाहती थीं कि अपना उभरता हुआ करियर छोड़कर सुब्बुलक्ष्मी शादी करें। परिवार की नाराजगी का दूसरा कारण था सदाशिवम का सुब्बुलक्ष्मी से 14 साल बड़ा होना। सदाशिवम पहले से शादीशुदा थे, लेकिन उनकी पत्नी की 1938 में मौत हो गई थी और उस शादी से उनकी 2 बेटियां भी थीं। परिवार की रजामंदी ना होने के बावजूद दोनों ने 10 जुलाई 1940 को शादी कर ली।

सदाशिवम ने जितनी मदद की, सुब्बुलक्ष्मी ने उसका अहसान भी चुकाया। जब 1941 में सदाशिवम ने अपनी मैगजीन कल्कि शुरू करने का फैसला किया तो फंड जमा करने के लिए सुब्बुलक्ष्मी ने फिल्म सावित्री की और उन्हें आर्थिक मदद दी।

इनके गाने आम जनता तक पहुंचाने के लिए बनाई गई फिल्म

सुब्बुलक्ष्मी के गानों को आम जनता तक पहुंचाने के लिए पति सदाशिवम ने खुद पैसे लगाकर फिल्में बनाने का फैसला किया। सुब्बुलक्ष्मी के सुझाव पर सदाशिवम ने मीराबाई पर फिल्म मीरा (1945) बनाने का फैसला किया और अपने दोस्त कल्कि कृष्णमूर्ति से फिल्म की स्क्रिप्ट तैयार करवाई।

फिल्म में सुब्बुलक्ष्मी को ही मीराबाई का लीड रोल दिया गया। फिल्म बनाने के लिए सदाशिवम ने बिना किसी फाइनेंसर की मदद लिए खुद अपने प्रोडक्शन हाउस चंद्रप्रभा सिनेटोन के बैनर तले पैसे लगाकर फिल्म बनाई थी।

मीरा का रोल निभाने के लिए सुब्बुलक्ष्मी खुद उन सभी जगहों पर जाकर रहीं, जहां मीरा ने कृष्ण भक्ति में समय बिताया था। 1944 में फिल्म की शूटिंग न्यूटोन स्टूडियो, मद्रास में शुरू हुई, जिसके बाद टीम ने जयपुर, वृंदावन, चित्तौड़ और द्वारका का चयन किया।

उदयपुर पैलेस में हुई शाही हाथी-घोड़ों के साथ शूटिंग

उदयपुर में शूटिंग के लिए सदाशिवम को शाही हाथी-घोड़ों की जरूरत थी। इसके लिए उन्होंने उदयपुर के महाराजा से उनके हाथी-घोड़े देने की विनती की। फिल्म के कॉन्सेप्ट से प्रभावित होकर उदयपुर के महाराजा ने हाथी-घोड़ों के साथ फिल्म बनाने के लिए अपना पैलेस इस्तेमाल करने की इजाजत से लेकर हर तरह से मदद की।

महाराजा के मंत्री की मदद से उन्हें शाही हाथी-घोड़े मिले और साथ ही महल में कहीं भी कभी भी शूटिंग करने की इजाजत भी। शूटिंग के लिए महल की शाही डांसर्स भी दी गईं। फिल्म में नजर आए कई एक्स्ट्रा कलाकार भी शाही लोग थे।

विदेशी डायरेक्टर को नहीं थी मंदिर जाने की इजाजत, खुद को बताया था कश्मीरी पंडित

इस फिल्म का निर्देशन अमेरिकन फिल्ममेकर एलिस आर. डंगन ने किया था, जो एक वेकेशन पर भारत आए थे, लेकिन फिर यहीं 15 साल तक रहकर उन्होंने फिल्में बनाईं। फिल्म का एक हिस्सा द्वारका के कृष्ण मंदिर में शूट हुआ था, लेकिन चूंकि डायरेक्टर हिंदू नहीं थे तो उन्हें मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं मिली। तब फिल्म की शूटिंग जारी रखने के लिए उन्होंने खुद को कश्मीरी पंडित बताया था।

शूटिंग के दौरान यमुना नदी में डूबने से बाल-बाल बची थीं सुब्बुलक्ष्मी

फिल्म के एक सीन के लिए सुब्बुलक्ष्मी को एक नाव की मदद से यमुना नदी पार करनी थी। शूटिंग के दौरान उनके सिर पर चोट लगी और वो बेहोश होकर नदी में गिर गईं। सुब्बुलक्ष्मी गहराई में डूब रही थीं, लेकिन कृष्णा नाम के एक नाविक ने ऐन वक्त पर उन्हें बचा लिया।

136 मिनट की फिल्म में थे सुब्बुलक्ष्मी के 20 गाने

3 नवंबर 1945 को दिवाली पर फिल्म मीरा रिलीज की गई। 136 मिनट की इस फिल्म में 20 गाने थे, जो सुब्बुलक्ष्मी ने ही गाए थे। ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर इतनी बड़ी हिट रही कि दो साल बाद कुछ सीन को रीशूट कर इसे 1947 में हिंदी में मीराबाई नाम से फिर रिलीज किया गया था।

फिल्म के प्रीमियर में पहुंचे थे माउंटबेटन, राजेंद्र प्रसाद, इंदिरा गांधी, जवाहरलाल नेहरू

21 नवंबर 1947 को मीराबाई फिल्म रिलीज हुई, जिससे सुब्बुलक्ष्मी तमिल स्टार से नेशनल स्टार बन गईं। फिल्म में सरोजिनी नायडू ने सुब्बुलक्ष्मी का परिचय करवाते हुए उन्हें नाइटेंगल ऑफ इंडिया (भारत की बुलबुल) नाम दिया था। फिल्म के प्रीमियर में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी पहुंचे थे। इनके अलावा लॉर्ड माउंटबेटन, राजेंद्र प्रसाद, विजयालक्ष्मी पंडित और इंदिरा गांधी जैसी देश की अन्य बड़ी हस्तियां भी थीं। फिल्म देखने के बाद जवाहरलाल नेहरू और माउंटबेटन सुब्बुलक्ष्मी के फैन बन गए थे।

फिल्म मीरा तमिल सिनेमा में म्यूजिकल कल्ट साबित हुई। बच्ची से एक बार में यंग रूप लेने वाली मीरा का शॉट फिल्ममेकिंग के इतिहास में भी माइलस्टोन बना। ये फिल्म आज भी भारत की 100 सबसे महान फिल्मों की लिस्ट में शामिल है।

कई ऑफर मिले, लेकिन म्यूजिक के लिए छोड़ दी एक्टिंग

1947 में हिंदी डबिंग के साथ रिलीज हुई सुब्बुलक्ष्मी की फिल्म मीरा ने उन्हें देश की टॉप एक्ट्रेस के बीच लाकर खड़ा कर दिया। इसके बाद उन्हें कई फिल्मों के ऑफर मिले, लेकिन उन्होंने फिल्मों से हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ लिया। मीरा इनकी पहली और आखिरी हिंदी फिल्म थी। सुब्बुलक्ष्मी ने अपना उभरता एक्टिंग करियर छोड़कर खुद को संगीत को समर्पित कर दिया।

जवाहरलाल नेहरू ने कहा था- आपके सामने मैं मामूली प्रधानमंत्री हूं

द प्रिंट के अनुसार, 1953 में दिल्ली में हुए कर्नाटक समारोह में सुब्बुलक्ष्मी को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सामने गाने का मौका मिला। फिल्म मीरा से पहले ही उनके फैन बन चुके जवाहरलाल नेहरू इस बार खुद को उनकी तारीफ करने से नहीं रोक सके। उन्होंने सुब्बुलक्ष्मी के पास जाकर कहा- आपकी आवाज में दिलों के तार हिला देने की ताकत है, मैं आपके सामने क्या हूं, सिर्फ एक मामूली प्रधानमंत्री।

गांधी जी भी फैन थे, सामने बैठाकर करते थे गाने की गुजारिश

स्वतंत्रता संग्राम में साथ काम करते हुए महात्मा गांधी और सुब्बुलक्ष्मी की दोस्ती हो गई। गांधी जी को उनकी आवाज इतनी पसंद थी कि उन्होंने कई बार सुब्बुलक्ष्मी से सामने बैठकर रघुपति राघव राजा राम सुनाने की गुजारिश की। 2 अक्टूबर 1947 को महात्मा गांधी ने दिल्ली में सुब्बुलक्ष्मी के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन करवाया। किसी वजह से सुब्बुलक्ष्मी कार्यक्रम में नहीं पहुंच सकीं।

एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू में एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी के रिश्तेदार ने बताया था, माफी के रूप में सुब्बुलक्ष्मी ने गांधी जी के लिए 6 भजन रिकॉर्ड कर भिजवाए थे। दरअसल, गांधी जी उनकी आवाज में अपना पसंदीदा भजन ‘हरि तुम हरो’ सुनना चाहते थे, लेकिन वो इसे अच्छे से गा नहीं पा रही थीं।

उन्होंने सुझाव दिया कि किसी और सिंगर से ये भजन गवाया जाए, लेकिन गांधी जी ने उन्हीं की आवाज में इसे सुनने की विनती की। 1 अक्टूबर को जब सुब्बुलक्ष्मी ने गांधी जी के लिए हरि तुम हरो रिकॉर्ड किया तो पहली बार उनकी आवाज कांप रही थी। रात के 3 बजे रिकॉर्डिंग पूरी हुई जो उसी सुबह फ्लाइट से गांधी जी को पहुंचाई गई थी।

गांधी जी की हत्या के बाद कई महीनों तक नहीं गाया भजन

जब 30 जनवरी 1948 को सुब्बुलक्ष्मी ने गांधी जी की हत्या की खबर सुनी तो वो बेहोश हो गईं। उन्हें इतना सदमा लगा कि उन्होंने कई महीनों तक हरि तुम हरो भजन नहीं गाया।

एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी के नाम पर है रंग

सुब्बुलक्ष्मी कांजीवरम साड़ियों की बड़ी शौकीन थीं। मुथु चेट्टियार नाम के एक बुनकर ने सुब्बुलक्ष्मी के लिए मिडिल सी ब्लू रंग की साड़ी डिजाइन की थी। सुब्बुलक्ष्मी को ये रंग इतना पसंद आया कि वो अक्सर कॉन्सर्ट में इसी रंग की साड़ी पहनने लगीं। ये रंग उनके द्वारा इतना पहना गया कि उनकी शताब्दी समारोह में उनके नाम पर मिडिल ब्लू कलर को एमएस ब्लू रंग नाम दिया गया। आज भी ये रंग इन्हीं के नाम से जाना जाता है।

विदेश में परफॉर्म करने वाली पहली भारतीय सिंगर थीं सुब्बुलक्ष्मी

भारत में पॉपुलैरिटी मिलने के बाद एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी ने 1966 में यूनाइटेड नेशन्स जनरल एसेंबली के लिए न्यूयॉर्क में परफॉर्मेंस देकर इतिहास रचा। ये विदेश में परफॉर्म करने वाली पहली भारतीय हैं। आगे इन्होंने लंदन, कनाडा से लेकर कई दूसरे देशों में भी परफॉर्मेंस दी।

फिल्में छोड़ने के बाद सुब्बुलक्ष्मी ने चैरिटी के लिए 200 कॉन्सर्ट कर फंड इकट्ठा किया था। उनकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा सामाजिक कार्यों में इस्तेमाल किया जाता था, जिनमें से मुख्य सेक्टर एजुकेशन और हेल्थ था।

पति की मौत के बाद छोड़ी गायिकी

1997 में पति कल्कि सदाशिवम की मौत के बाद एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी बुरी तरह टूट गईं। 1997 में आखिरी परफॉर्मेंस देने के बाद सुब्बुलक्ष्मी ने हमेशा के लिए पब्लिक कॉन्सर्ट करना बंद कर दिया और खोट्टुपुरम, चेन्नई में रहने लगीं। 7 साल बाद 11 दिसंबर 2004 को एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी का भी निधन हो गया।

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