Russia Ukraine War: ऑर्थोडॉक्स क्रिश्चियन कौन होते हैं? जिनके लिए पुतिन ने रोक दिया युद्ध… ये कैथोलिक से अलग क्यों?


हाइलाइट्स

रूस में ऑर्थोडॉक्स चर्च का बहुत बड़ा प्रभाव सत्ता से लेकर आम जीवन में रहा है.
रूस के भीतर और बाहर लगभग इसके 100 मिलियन अनुयायी मौजूद हैं.
कैथोलिक और ऑर्थोडॉक्स चर्च को द ग्रेट स्किज्म ने वर्ष 1054 में दो हिस्सों में विभाजित किया था.

मास्को. यूक्रेन के साथ बीते 11 महीने से चल रहे युद्ध को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) ने ऑर्थोडॉक्स धर्म गुरु पैट्रिआर्क किरिल (Orthodox Patriarch Kirill of Moscow) की अपील पर दो दिनों के लिए रोक दिया है. रूस की सरकारी न्यूज़ एजेंसी तास की एक रिपोर्ट के अनुसार रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने गुरुवार को यूक्रेन में ऑर्थोडॉक्स क्रिसमस पर 36 घंटे के युद्धविराम का आदेश दिया, जो 10 महीने से अधिक लंबे युद्ध का पहला बड़ा युद्धविराम है. यह कदम इसलिए उठाया गया है, क्यूंकि ऑर्थोडॉक्स क्रिश्चियन, कैथोलिक क्रिश्चियन के इतर अपना क्रिसमस हर साल 7 जनवरी को जूलियन कैलेंडर के मुताबिक मनाते हैं. आपको बता दें कि मौजूदा कैलेंडर ग्रेगोरियन कैलेंडर को न मानते हुए ऑर्थोडॉक्स चर्च अभी भी जूलियन कैलेंडर का उपयोग क्रिसमस दिवस मनाने के लिए करते हैं.

आखिर ऑर्थोडॉक्स चर्च के कहने पर क्यों रोका गया युद्ध
रूस में ऑर्थोडॉक्स चर्च (Orthodox Church) का बहुत बड़ा प्रभाव सत्ता से लेकर आम जीवन में रहा है. रूसी रूढ़िवादी या ऑर्थोडॉक्स चर्च पूर्वी रूढ़िवादी समुदाय में सबसे बड़ा माना जाता है. इसके रूस के भीतर और बाहर लगभग 100 मिलियन अनुयायी मौजूद हैं. वहीं खुद रूस के राष्ट्रपति एक कट्टर रूढ़िवादी नेता माने जाते हैं. हाल ही में LGBT पर बनाये गए कानून उनके जीवन पर ऑर्थोडॉक्स चर्च की छाप को अच्छे से दर्शा रहे हैं. ऐसे में उन्होंने ऑर्थोडॉक्स धर्म गुरु पैट्रिआर्क किरिल की अपील का सम्मान करते हुए दो दिनों के सीजफायर (Cease fire in Ukraine Russia War) की घोषणा की है. हालांकि यूक्रेन ने रूसी ऑर्थोडॉक्स चर्च को एक वॉर प्रोपगैंडिस्ट बताते हुए इस अपील को मानने से इंकार कर दिया है.

क्या है ऑर्थोडॉक्स चर्च
पूर्वी ऑर्थोडॉक्स चर्च, जिसे ऑर्थोडॉक्स चर्च भी कहा जाता है, दूसरा सबसे बड़ा ईसाई चर्च है, जो खुद को जीसस क्राइस्ट (Jesus Christ) द्वारा स्थापित चर्च बताता आया है. रूढ़िवादी मानते हैं कि ईसाई धर्म और चर्च को अलग नहीं किया जा सकता है और साथ ही बिना ईसा मसीह को जाने और चर्च में भाग लिए कोई भी ईसाई नहीं माना जा सकता है. पूर्वी रूढ़िवादी चर्च का दावा है कि यह आज उसी प्रारंभिक चर्च की निरंतरता और संरक्षण है, जो ईसाइयों के धर्म ग्रंथो में लिखा है. ऑर्थोडॉक्स चर्च को मानने वाले रूढ़िवादी प्रथाओं का पालन करते हैं.

ऑर्थोडॉक्स और कैथोलिक में फर्क
कैथोलिक और ऑर्थोडॉक्स चर्च को द ग्रेट स्किज्म ने वर्ष 1054 में दो हिस्सों में विभाजित किया था और विभाजन लगभग एक हजार वर्षों के बाद भी मौजूद है. 16 जुलाई, 1054 को, कांस्टेंटिनोपल के पैट्रिआर्क माइकल सेरुलरियस को रोम, इटली में स्थित ईसाई चर्च से बहिष्कृत कर दिया गया था. रोम में स्थित रोमन चर्च और कांस्टेंटिनोपल स्थित बैजेन्टाइन चर्च के बीच लंबे समय से बढ़ते तनाव में सेरुलरियस का बहिष्कार दोनों के बीच विभाजन का एक बड़ा कारण था. परिणामी विभाजन ने यूरोपीय ईसाई चर्च को दो प्रमुख शाखाओं पश्चिमी रोमन कैथोलिक चर्च और पूर्वी रूढ़िवादी चर्च में बांट दिया. इस विभाजन को ग्रेट स्किज्म (Great Schism 1054) या कभी-कभी “ईस्ट-वेस्ट स्किज्म” (East-West Schism) या “1054 के स्किज्म” के रूप में जाना जाता है.

द ग्रेट स्किज्म धार्मिक असहमति और राजनीतिक संघर्षों के जटिल मिश्रण के कारण आया. चर्च की पश्चिमी (रोमन) और पूर्वी (बैजेन्टाइन) शाखाओं के बीच कई धार्मिक असहमतियों में से एक यह था कि क्या भोज के संस्कार के लिए अखमीरी रोटी या ब्रेड का उपयोग करना स्वीकार्य था या नहीं. पश्चिम ने इस प्रथा का समर्थन किया, जबकि पूर्व ने नहीं किया. विभिन्न प्रकार के राजनीतिक संघर्षों, विशेषकर रोम की शक्ति के संबंध में इन धार्मिक असहमतियों को और भी बदतर बना दिया गया.
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दोनों चर्च की प्रथाओं में विभाजन के कुछ अन्य बड़े प्रमुख कारण भी हैं, जिनमें से कुछ दोनों को एक दूसरे से भिन्न बनाते हैं. यह इस प्रकार हैं.

कैथोलिक और ऑर्थोडॉक्स में सबसे बड़ा तकरार हेड ऑफ़ चर्च को लेकर बना हुआ है. रूढ़िवादी ईसाई ईसा मसीह को चर्च का प्रमुख मानते हैं, जबकि रोमन कैथोलिक चर्च का नेतृत्व पोप करते हैं, जो ‘क्राइस्ट ऑफ क्राइस्ट’ की उपाधि का उपयोग करते हैं.

रोमन कैथोलिक चर्च में, पुजारियों और बिशपों को दीक्षा से पहले और बाद में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए जबकि ऑर्थोडॉक्स चर्च में पादरियों को विवाह करने की अनुमति होती है. हालांकि, अगर उनकी पत्नी की मृत्यु हो जाती है, तो रूढ़िवादी पादरियों को पुनर्विवाह करने की अनुमति नहीं है.

परंपरागत रूप से, रूढ़िवादी पादरी दाढ़ी रखते हैं, क्योंकि लैव्यवस्था, 21:5 के अनुसार, पादरियों को अपना सिर या अपनी दाढ़ी को मुंडवाना या अपने शरीर के बालों को कटवाना नहीं चाहिए. हालांकि, कैथोलिक पादरी दाढ़ी नहीं रखते हैं, क्योंकि पापल सीट रोम में मुंडन करने की प्रथा अभी भी जीवित है.

1570 में, पोप पायस वी ने परिभाषित किया था कि कैथोलिक चर्च के अनुयायियों को सिर से छाती तक और बाएं कंधे से दाएं तक क्रॉस का चिन्ह बनाना चाहिए. वहीं रूसी रूढ़िवादी ईसाई तीन अंगुलियों (अंगूठा, तर्जनी और मध्य) के साथ क्रॉस का चिन्ह बनाते हैं, जो पवित्र ट्रिनिटी का प्रतीक है. इसके अलावा, क्रॉस का रूढ़िवादी चिन्ह दाहिने कंधे से बाईं ओर किया जाता है.

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