मानवाधिकार संगठन ने भाजपा शासित राज्यों में ‘मुस्लिम विरोधी’ बुलडोज़र अभियानों की निंदा की


विश्व भर में मानवाधिकारों की स्थिति पर नज़र रखने वाले अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि कैसे 2022 में भारत की विभिन्न राज्यों की सरकारों ने कम आय वाले समूहों, विशेष तौर पर मुसलमानों के ख़िलाफ़ ग़ैर-न्यायिक सज़ा के तौर पर उनके घर गिराने की कार्रवाई की है.

(प्रतीकात्मक तस्वीर: पीटीआई)

नई दिल्ली: अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) की नवीनतम रिपोर्ट में भारतीय मुसलमानों और निम्न-आय वर्ग से आने वाले लोगों के घरों को ध्वस्त करने के लिए विभिन्न राज्य सरकारों के अभियान के सामान्यीकरण पर बात की गई है.

विश्व भर में मानवाधिकारों की स्थिति पर नजर रखने वाले इस अमेरिकी संगठन ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में 100 देशों में मानवाधिकारों के हनन और चिंताओं का विवरण देते हुए इस बात पर ध्यान दिया कि कैसे 2022 में भारत की विभिन्न राज्यों की सरकारों ने कम आय वर्ग वाले लोगों, विशेष तौर पर मुसलमानों के खिलाफ गैरन्यायिक सजा के तौर पर उनके घर गिराने की कार्रवाई की.

हालांकि, मानवाधिकारों के पैरोकारों ने असहमति रखने वालों और प्रदर्शनकारियों के खिलाफ होने वाली इस कार्रवाई की लगाताकर निंदा की है, लेकिन सरकारों ने इसे कानून व्यवस्था कायम रखने का प्रभावी तरीका माना है.

जनवरी 2023 में भारत की सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जो बुलडोजर बाबा के तौर पर लोकप्रिय हैं, ने इस तरह के ध्वस्तीकरण अभियानों को संभावित ‘शांति के प्रतीक’ के तौर पर उचित ठहराया था.

एचआरडब्ल्यू ने अपनी 33वें संस्करण की 2022 की 722 पृष्ठीय वार्षिक रिपोर्ट में इस कवायद का जिक्र किया है. यह शायद पहली बार है कि एक वैश्विक मानवाधिकार निकाय ने कमजोर समूहों के खिलाफ सरकार द्वारा चलाए जा रहे ध्वस्तीकरण अभियान को अमल में लाने पर पर चिंता व्यक्त की है.

एचआरडब्ल्यू ने कहा है कि भारतीय मुसलमानों के खिलाफ उनके घरों को ध्वस्त करने की कार्रवाई भाजपा शासित राज्य सरकारों द्वारा तेजी से की जा रही है.

रिपोर्ट में 2022 की ऐसी कई घटनाओं का उल्लेख किया गया है, जो मुस्लिम समुदाय को राज्य सरकार द्वारा निशाना बनाए जाने की घटनाए प्रतीत होती हैं.

एचआरडब्ल्यू रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अप्रैल में अधिकारियों ने मध्य प्रदेश, गुजरात और दिल्ली में सांप्रदायिक झड़पों के जवाब में मुस्लिमों के स्वामित्व वाली संपत्तियों को ध्वस्त कर दिया. हालांकि, उन्होंने संपत्तियों के अवैध होने का दावा करके विध्वंस को सही ठहराने की कोशिश की, लेकिन यह कार्रवाई मुसलमानों के लिए सामूहिक सजा प्रतीत होती है.’

इसमें मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा के उस बयान का हवाला भी दिया गया, जिसमें उन्होंने सार्वजनिक तौर पर धमकी दी थी कि ‘पत्थरबाजी’ में शामिल लोगों के घरों को ‘मलबे में बदल’ दिया जाएगा.

मिश्रा ने कथित तौर पर अंतर-सांप्रदायिक हिंसा में भाग लेने वाले तीन मुस्लिमों के घरों को तुड़वा दिया, लेकिन हिंदू समुदाय के ऐसे ही आरोपियों को बख्श दिया.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा, ‘जून 2022 में पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ एक भाजपा नेता की टिप्पणी के कारण देश भर के मुसलमानों ने व्यापक विरोध प्रदर्शन किया. झारखंड में पुलिस ने कथित तौर पर प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अत्यधिक बल प्रयोग किया, जिसमें दो लोगों की मौत हो गई. जबकि, उत्तर प्रदेश में अधिकारियों ने अवैध रूप से मुसलमानों के घरों को ध्वस्त कर दिया, जिन पर विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा के पीछे का ‘प्रमुख साजिशकर्ता’ होने का संदेह था.’

एचआरडब्ल्यू ने कहा कि ऐसी सभी कार्रवाइयों में राज्य सरकार के पास कोई ‘कानूनी अधिकार’ नहीं था.

इसने कहा, ‘कई भाजपा शासित राज्यों में अधिकारियों ने बिना कानूनी अधिकार या उचित प्रक्रिया का पालन किए मुस्लिमों के घर और संपत्तियां ध्वस्त कर दिए.’

एचआरडब्ल्यू ने कहा कि जून 2022 में संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूतों ने इस संबंध में भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को भी लिखा था.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘उन्होंने (विशेष दूतों) कहा कि अधिकारी कथित तौर पर इन घटनाओं की जांच करने में विफल रहे, जिनमें हिंसा के लिए उकसाना और डराने-धमाने के कार्य शामिल है, जिनके चलके हिंसा भड़की.’

मानवाधिकार संगठन ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में वैश्विक मानवाधिकारों के मानकों का उल्लंघन करने में चीन की ‘नकल’ करने की कोशिश करने के लिए भारत पर निशाना साधा और विशेष तौर पर अल्पसंख्यकों के खिलाफ सत्तारूढ़ भाजपा में बढ़ते बहुसंख्यक हमलों का विवरण दिया.

इसमें कहा गया है, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिंदू-राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी ने उन्हीं उल्लंघनों में से कई की नकल की है, जिनसे चीनी सरकार ने सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए दमन किया. जैसे धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ व्यवस्थित भेदभाव, शांतिपूर्ण असंतोष का दमन, और स्वतंत्र अभिव्यक्ति को दबाने के लिए तकनीक का इस्तेमाल.’

एचआरडब्ल्यू ने मानवाधिकारों को लागू करने वाले राज्य संस्थानों के कामकाज में बहुसंख्यक पूर्वाग्रहों पर भी निशाना साधा.

इसने कहा कि भाजपा समर्थकों ने लक्षित समूहों के खिलाफ हिंसक हमले किए. वहीं, सरकार की हिंदू बहुसंख्यकवादी विचारधारा संस्थानिक पूर्वाग्रहों के तौर पर भी दिखाई दी, जिसमें न्याय प्रणाली और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग जैसे संवैधानिक प्राधिकरण शामिल हैं.

2022 में घटनाओं के विस्तृत दस्तावेजीकरण में ह्यूमन राइट्स वॉच ने पाया कि भारत में बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए मुख्य रूप से सरकारी संस्थानो की सक्रिय मिलीभगत जिम्मेदार थी, जो भाजपा के नेतृत्व वाली भारत सरकार की सत्तावादी लालसा को आगे बढ़ा रहे थे.

इसने आगे कहा कि राज्य प्राधिकरणों ने ‘ईसाइयों, विशेष रूप से दलित और आदिवासी समुदायों से आने वालों को निशाना बनाने के लिए’ उनके खिलाफ जबरन धर्मांतरण रोकने संबंधी कानूनों का दुरुपयोग किया.

इसने 2002 के सांप्रदायिक हमलों की शिकार बनीं बिलकीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सदस्यों की हत्या के 11 हिंदू दोषियों की रिहाई का भी विशेष तौर पर उल्लेख किया.

एचआरडब्ल्यू ने साथ ही कहा कि जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के तीन साल बाद भी सरकार ने स्वतंत्र अभिव्यक्ति, शांतिपूर्ण विधानसभा और अन्य बुनियादी अधिकारों को प्रतिबंधित करना जारी रखा है. मनमाने ढंग से जम्मू कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) और यूएपीए का इस्तेमाल पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को हिरासत में लेने किया है.

इसी तरह मानवाधिकार संगठन ने भारत में गैर-न्यायिक हत्याओं और प्रताड़ना की भी बात कही है और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आंकड़ों का हवाला दिया है. साथ ही पूर्वोत्तर में लागू सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (आफस्पा) के तहत दमन का उल्लेख भी किया है.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला एचआरडब्ल्यू की सबसे बड़ी चिंताओं में से एक रहा.

वित्तीय अनियमितताओं के आरोप और ‘राजनीतिक रूप से प्रेरित’ (आय) कर छापे और अभियोग; महत्वपूर्ण एनजीओ, कार्यकर्ताओं और अधिकार समूहों जैसे ऑक्सफैम इंडिया, बेंगलुरु स्थित इंडिपेंडेंट एंड पब्लिक स्पिरिटेड मीडिया फाउंडेशन, दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के विदेशी फंडिंग पर प्रतिबंध; प्रमुख मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़, पत्रकार मोहम्मद जुबैर और झारखंड के पत्रकार रूपेश कुमार का उल्लेख संगठन की रिपोर्ट में विशेष तौर पर किया गया है.

रिपोर्ट में महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा की खतरनाक दर पर भी चिंता जताई गई है, जिसमें कहा गया है कि यह 2022 में भी बढ़ना जारी है.

हालांकि, रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का उल्लेख करते हुए उम्मीद की किरण भी देखी गई है, जैसे कि राजद्रोह कानून के इस्तेमाल पर प्रतिबंध, महिलाओं को गर्भपात का अधिकार, टू-फिंगर टेस्ट पर प्रतिबंध. वहीं कर्नाटक के हिजाब विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के किसी निर्णय पर न पहुंच पाने पर उसने निराशा जताई गई है.

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.





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