बिलक़ीस मामले के प्रमुख गवाह ने रिहा हुए दोषी से जान को ख़तरा बताते हुए सीजेआई को पत्र लिखा

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गुजरात सरकार द्वारा इसकी क्षमा नीति के तहत बिलक़ीस बानो सामूहिक बलात्कार और उनके परिजनों की हत्या के मामले में उम्रक़ैद की सज़ा काट रहे 11 दोषियों को समयपूर्व रिहा किया गया है. इस मामले में प्रमुख गवाह रहे एक शख़्स ने आरोप लगाया है कि रिहा हुए एक दोषी ने उन्हें मारने की धमकी दी है.

15 अगस्त 2022 को दोषियों के जेल से रिहा होने के बाद उनका स्वागत किया गया था. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: बिलकीस बानो मामले के एक प्रमुख गवाह इम्तियाज घांची (45) ने दावा किया है कि उन्हें हाल ही में एक दोषी राधेश्याम शाह ने धमकी दी है.

द क्विंट की रिपोर्ट के अनुसार, इम्तियाज ने देश के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित को पत्र लिखते हुए जान के खतरे के मद्देनजर सुरक्षा की मांग की है.

क्विंट के अनुसार, घांची ने 15 सितंबर को शाह के साथ अचानक हुई मुलाकात के बारे में याद करते हुए कहा, ‘उन्होंने [शाह] ने मुझे यह कहते हुए धमकी दी कि हम तुम लोगों को पीटकर गांव से निकालेंगे.’

राधेश्याम शाह 2002 के गोधरा दंगों के दौरान बिलकीस बानो के सामूहिक बलात्कार और उनकी तीन साल की बेटी सहित उनके परिजनों की हत्या के लिए दोषी ठहराए गए 11 लोगों में से एक हैं, जिन्हें बीते 15 अगस्त को गुजरात सरकार द्वारा सजा माफ़ करने के बाद समय-पूर्व रिहा किया गया है.

ज्ञात हो कि दोषियों की रिहाई के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, जिसने इस महीने की शुरुआत में गुजरात सरकार को दोषियों की रिहाई संबंधित रिकॉर्ड पेश करने का निर्देश दिया था.

15 सितंबर की घटना याद करते हुए घांची ने क्विंट को बताया कि राधेश्याम ने उन्हें पिपलोद रेलवे फाटक पर देखा था, जब वे सिंगवड़ गांव से अपने घर देवगढ़ बरिया में जा रहे थे. उन्होंने स्वीकारा कि वे डर गए थे, लेकिन उन्हें हैरानी नहीं हुई क्योंकि उन्हें ऐसी स्थिति की आशंका तब से थी, जबसे ग्यारह दोषियों को रिहा किया गया था.

उन्होंने  बताया, ‘मैं मोटरसाइकिल पर था और ट्रेन के गुजरने का इंतज़ार कर रहा था, जब राधेश्याम शाह ने मुझे देखा और उसके पास आने का इशारा किया. मैं उसके पास जाने से डर रहा था लेकिन चला गया. फिर उसने मुझे धमकी दी कि अब तो हम बाहर आ गए हैं. तुम लोगों को मार-मार के गांव से निकालेंगे. ‘

2002 में दंगों के तत्काल बाद घांची ने अपने परिवार के साथ अपने पैतृक गांव सिंगवड़ (रंधिकपुर) में अपना घर छोड़ दिया और देवगढ़ बरिया में एक राहत कॉलोनी में चले गए थे और तब से वे अपनी पत्नी और बच्चों के साथ वहीं रह रहे हैं.

उन्होंने बताया, ‘2002 में दंगों के बाद गांव (रंधिकपुर) जाना छोड़ दिया था. वापस जाने की हिम्मत कभी नहीं हुई. लेकिन मैं दिहाड़ी मजदूर हूं, काम की तलाश में गांव जाना पड़ता है.’

19 सितंबर को सीजेआई को लिखे अपने पत्र में घांची ने बताया है कि राधेश्याम शाह, जो अपने ड्राइवर के साथ अपनी कार में बैठे थे, ने उन्हें धमकी दी और जब वे वहां से जा रहे थे, तो उन पर हंसे. तबसे लेकर अब तक घांची ने सीजेआई समेत कई अधिकारियों को पत्र लिखे हैं. उन्होंने सीजेआई को गुजरात के गृह सचिव और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को लिखे पत्र की एक प्रति भी भेजी है, जिसमें कहा गया है कि उनकी जान को खतरा है.

मामले में विशेष मुंबई केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) अदालत में मुकदमे के दौरान घांची ने बताया था कि गोधरा ट्रेन जलने की घटना के अगले दिन उन्होंने एक आरोपी (अब मृत) नरेश मोढिया को हाथ में रामपुरी चाकू पकड़े हुए देखा था.

उन्होंने अदालत को यह भी बताया था कि उन्होंने रंधिकपुर में एक अन्य आरोपी प्रदीप मोढिया को अपने घर के पास पथराव करते और नारे लगाते हुए भी देखा था.

गौरतलब है कि 27 फरवरी, 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे में आग लगने की घटना में 59 कारसेवकों की मौत हो गई. इसके बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क गए थे. दंगों से बचने के लिए बिलकीस बानो, जो उस समय पांच महीने की गर्भवती थी, अपनी बच्ची और परिवार के 15 अन्य लोगों के साथ अपने गांव से भाग गई थीं.

तीन मार्च 2002 को वे दाहोद जिले की लिमखेड़ा तालुका में जहां वे सब छिपे थे, वहां 20-30 लोगों की भीड़ ने बिलकीस के परिवार पर हमला किया था. यहां बिलकीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया, जबकि उनकी बच्ची समेत परिवार के सात सदस्य मारे गए थे.

बिलकीस द्वारा मामले को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में पहुंचने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे. मामले के आरोपियों को 2004 में गिरफ्तार किया गया था.

केस की सुनवाई अहमदाबाद में शुरू हुई थी, लेकिन बिलकीस बानो ने आशंका जताई थी कि गवाहों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है, साथ ही सीबीआई द्वारा एकत्र सबूतों से छेड़छाड़ हो सकती, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2004 में मामले को मुंबई स्थानांतरित कर दिया.

21 जनवरी 2008 को सीबीआई की विशेष अदालत ने बिलकीस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके सात परिजनों की हत्या का दोषी पाते हुए 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. उन्हें भारतीय दंड संहिता के तहत एक गर्भवती महिला से बलात्कार की साजिश रचने, हत्या और गैरकानूनी रूप से इकट्ठा होने के आरोप में दोषी ठहराया गया था. बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा था.



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