बच्चा-चोरी की मनगढ़ंत अफ़वाहों के कारण बढ़ते हमले और उन्हें रोकने में असमर्थ पुलिस एवं प्रशासन


[इस स्टोरी में संवेदनशील तस्वीरें और वीडियोज़ शेयर किये गए हैं. पाठक अपने विवेक से इन्हें देखने या न देखने का निर्णय लें.]

सितंबर के पहले हफ़्ते से ऑल्ट न्यूज़ को बच्चों के अपहरण की घटनाओं या अफवाहों से संबंधित ऑडियो और वीडियो क्लिप को वेरीफ़ाई करने के लिए हर दिन कई रिक्वेस्ट मिलने लगे. ये रिक्वेस्ट सामान्य से काफी ज़्यादा थी और उनमें से ज़्यादातर दावे भारत के सबसे बड़े राज्यों में से एक उत्तर प्रदेश से सामने आए थे. इन सभी मामलों में, आम जनता द्वारा किसी व्यक्ति या ग्रुप पर बच्चा चोर होने के शक से हमला किया गया था.

इसके आधार पर ऑल्ट न्यूज़ ने की-वर्ड्स सर्च का इस्तेमाल करके न्यूज़ रिपोर्ट्स की जांच शुरुआत की और सोशल मीडिया को मॉनिटर भी किया. हमने देखा कि 30 अगस्त से 13 सितंबर के बीच व्यक्तियों पर हमले तेजी से बढ़ें हैं. 30 अगस्त को बिहार के पश्चिम चंपारण के DK शिकारपुर गांव में ग्रामीणों द्वारा एक मानसिक रूप से विक्षिप्त महिला के साथ मारपीट की गई. उसी दिन, उत्तर प्रदेश के फूलपुर में साधुओं के एक ग्रुप को पुलिस ने बच्चा चोरी के आरोप में हिरासत में लिया था. कई मामलों में, साधु और मानसिक रूप से विकलांग व्यक्तियों को बच्चा चोरी की अफवाहों के चलते भीड़ के हमलों का शिकार होना पड़ा.


इन अफ़वाहों ने प्रयागराज में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों तक को नहीं बख्शा. अधिकारी एक डेंगू रोगी के घर और उसके आस-पास लारविसाइड का छिड़काव करने के लिए एक गांव में गए थे. ग्रामीणों ने उन्हें बच्चा चोर समझकर उनका पीछा करना शुरू कर दिया. स्वास्थ्यकर्मी बहुत मुश्किल से वहां से भागने में सफल हुए. बाद में गांव के बाहरी इलाके में गांव के बुजुर्गों से मिलकर उन्हें समझाया कि वे स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं. इस घटना पर अमर उजाला ने 13 सितंबर को रिपोर्ट पब्लिश की थी.

दैनिक भास्कर ने रिपोर्ट किया कि बिहार में 9 सितंबर को काम पर जा रहे आठ लोगों पर ग्रामीणों ने हमला किया था. उसी दिन, ये रिपोर्ट आयी कि बच्चे के अपहरण के शक में यूपी के कासगंज में स्थानीय लोगों द्वारा एक दूरसंचार कंपनी के चार कर्मचारियों पर हमला किया गया था. बाद में पुलिस ने उन्हें बचाया. 11 सितंबर को जागरण ने खबर दी कि उत्तराखंड के एक गांव में शराब खरीदने गए तीन युवकों पर इसी वज़ह से ग्रामीणों ने हमला किया. स्थिति को नियंत्रित करने गए पुलिसकर्मियों को भी नहीं बख्शा गया. फिर, 12 सितंबर को यूपी के पिलीभीत में ग्रामीणों द्वारा एक दंपति पर हमला किया गया. वो दोनों अपनी बेटी के साथ यात्रा कर रहे थे. जागरण के मुताबिक, दंपती और उनकी तीन साल की बच्ची के साथ बाइक से जा रहे थे. इस दौरान वो रोने लगी जिससे लोगों में शक पैदा हो गया और उन्होंने उस व्यक्ति पर हमला कर दिया.

30 अगस्त से 13 सितंबर के बीच साधुओं पर हमले की संख्या 6 थी. जबकि आठ मामलों में मानसिक रूप से विकलांग व्यक्ति सबसे ज़्यादा थे. 15 दिनों की अवधि में हमलों की कुल संख्या 27 थी. 1 सितंबर से 13 सितंबर तक कुल 25 हमले सामने आए हैं.


हमने ये भी देखा कि उत्तर प्रदेश में 17 हमले हुए. उसके बाद बिहार में 7 और कर्नाटक, महाराष्ट्र और उत्तराखंड में एक-एक हमले हुए.


इतनी बड़ी संख्या में बच्चे के अपहरण की अफवाहों के इस लहर की वज़ह क्या थी? ये बताना मुश्किल है. हालांकि, इसके लिए समय लेकर माहौल बनाया गया था. बच्चे के अपहरण की घटनाओं को दिखाने वाले स्क्रिप्टेड वीडियोज़ महीनों से सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे हैं. सारे वीडियोज़ एक-दूसरे से अलग हैं. कुछ को सांप्रदायिक मेसेज के साथ भी शेयर किया गया. लेकिन असली दावा बच्चा चोरी का ही था. एक व्यक्ति या ग्रुप बच्चों को चुराता है और या तो पकड़ा जाता है या फिर भाग जाता है जिनमें से ज़्यादातर मामले सार्वजनिक जगहों में होते हैं.

बच्चा चोरी की अफ़वाहों से पहले: स्क्रिप्टेड वीडियो, एडिटेड क्लिप, अनवेरीफ़ाईड ऑडियो, असबंधित वीडियो और बहुत कुछ

अगस्त के अंत तक सोशल मीडिया पर इस तरह के दो नाटकीय वीडियो क्लिप्स वायरल हो गए थे. पहले वीडियो में हम देख सकते हैं कि तीन आदमी पैसे के लिए सौदेबाजी कर रहे हैं और बेहोश बच्चे उनके आसपास पड़े हैं. दूसरे वीडियो में कुछ लोगों को हम दो नकाबपोश लोगों के साथ पूछताछ कर रहे हैं. इसमें कार की पिछली सीट पर बच्चों को लेटे हुए भी देखा जा सकता है.

यहां हमने पहली क्लिप एम्बेड की है. (आर्काइव लिंक)

दूसरी क्लिप सार्वजनिक डोमेन में मौजूद नहीं है. हालांकि, ऑल्ट न्यूज़ ने उस वीडियो से जुड़े स्क्रीनग्रैब्स नीचे शेयर किये हैं.


ऑल्ट न्यूज़ और द क्विंट की फ़ैक्ट-चेक टीम ने दोनों वीडियोज़ की पड़ताल की. दरअसल, द क्विंट ने जुलाई की शुरुआत में दूसरे स्क्रिप्टेड वीडियो की पड़ताल की थी. हालांकि, दोनों वीडियो व्हाट्सऐप पर वायरल होते रहते हैं.

अफवाहों की इस लहर के दौरान, पुरानी क्लिप भी ऑनलाइन दिखाई देने लगीं. ऐसा ही एक और नाटकीय वीडियो है जिसमें बुर्का पहने एक व्यक्ति को बच्चा चुराते हुए देखा जा सकता है. ये वीडियो मिस्र में शूट किया गया था. लेकिन ये इस दावे के साथ वायरल था कि ये भारत की घटना है. जुलाई में ऑल्ट न्यूज़ और कई दूसरे फ़ैक्ट-चेकिंग संगठनों ने इस वीडियो क्लिप की फिर से पड़ताल की थी. लेकिन फिर से ये एक असली घटना के क्लिप के रूप में ऑनलाइन शेयर किया जा रहा है. जुलाई में विशेष रूप से बच्चा चोरी के नाटकीय वीडियोज़ वायरल होने के दो और मामले देखे गए. उनमें से एक वीडियो में एक महिला, मूक-बधिर महिला के बच्चे को चुरा रही है. वहीं दूसरे वीडियो में बुर्का पहने एक व्यक्ति को बच्चा लेकर दौड़ते हुए देखा जा सकता है. बाद में ऑल्ट न्यूज़ ने दोनों वीडियो क्लिप की पड़ताल की.

ऑल्ट न्यूज़ द्वारा नाटकीय वीडियो वायरल होने की घटना का अच्छी तरह से डॉक्यूमेंटेशन किया गया है जो लोग डेटाबेस देखना चाहते हैं वो इस लिंक पर क्लिक देख सकते हैं. इस साल जून में ऑल्ट न्यूज़ ने स्क्रिप्टेड ‘CCTV’ वीडियो के बारे में भी लिखा कि कैसे लोग इन वीडियोज़ को सच मान लेते हैं. पूरी स्टोरी यहां पढ़ी जा सकती है.


ये एक ऐसा चलन है जो पहले नहीं देखा गया था. बच्चा चोरी की अफवाहों की वर्तमान लहर में असंबंधित ऑडियो या वीडियो क्लिप को जमा करके एक असली घटना के रूप में प्रसारित किया गया. उदाहरण के लिए, एक साधु की पिटाई की वीडियो क्लिप के साथ एक असंबंधित वॉयस-ओवर था जो एक पब्लिक अनाउंसमेंट की तरह लगता है.

ऑडियो क्लिप में लोगों को सतर्क रहने के लिए कहा गया है क्योंकि बाहर एक ‘बच्चा चोर गिरोह’ (बाल अपहरण गिरोह) है और वो अंग व्यापार या बाल तस्करी के लिए बच्चों का अपहरण करते हैं. क्लिप में कहा गया है कि गिरोह के ये सदस्य साधु (ऋषि), कबाड़ीवाला (कबाड़ बेचने वाला), फकीर और फेरीवाला (हॉकर्स) के वेश में आते हैं. क्लिप में ये भी कहा गया है कि अगर कोई अनजान व्यक्ति रास्ता पूछने के लिए अपनी कार को आपके सामने रोकता है तो आपको उससे दूर हो जाना चाहिए. रिकॉर्डिंग ये कहते हुए खत्म होती है, “ऑडियो रिकॉर्डिंग अबरार छोटू, सीतापुर.”

  1. “बच्चा अपहरण का ऑडियो”

इन अफवाहों को सच बताते हुए एक और फर्ज़ी वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा था. इसमें एक पुलिस अधिकारी बच्चे के अपहरण की अफवाहों पर मीडिया से बात कर रहा है. इस क्लिप में भी एक ऐसा ही वॉयस-ओवर था. दोनों वीडियो क्लिप्स में बोले गए शब्द एक जैसे हैं: फेरीवाले (फेरीवाले), कबाड़ीवाला (कबाड़ बेचने वाले), साधु (ऋषि), या यहां तक ​​कि भिखारी (भिखारी) के लिए भी अपने घर के दरवाजे न खोलें. ऑडियो में ये भी दावा किया गया कि भिखारी के वेश में 500 लोग बरगदवा से आए हैं. रास्ते में जो भी आता है उसे बंधक बना लेते हैं और उनका दिल और किडनी बेच देते हैं. वीडियो क्लिप ये कहते हुए खत्म होती है कि ये बात SP (नगर) डॉ कौस्तब ने गोरखपुर में मीडिया आउटलेट्स से बात करते हुए कही थी.

ऑल्ट न्यूज़ द्वारा 2019 में इस क्लिप की पड़ताल की गई थी. हालांकि, ये अभी 2022 में भी एक असली वीडियो क्लिप के रूप में वायरल हो रहा है.

अफवाहों के मौजूदा दौर में मध्य प्रदेश के रायसेन का एक वीडियो वायरल है जिसमें बच्चा चोरी में साधुओं के शामिल होने की बात बताई गई है. अगस्त की शुरुआत में, रायसेन में ग्रामीणों ने साधुओं के वेश में चोरों के एक समूह को पकड़ा जिन्होंने पूजा करने के नाम पर एक महिला से गहने चुराए थे. बाद में ग्रामीणों ने उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया. इस वीडियो को अब बच्चे के अपहरण का मामला बताकर शेयर किया जा रहा है. इन मामलों को हवा देने के लिए “अबरार छोटू” की क्लिप या सीतापुर पुलिस के एडिटेड वीडियो को शेयर किया जा रहा है.

ऑल्ट न्यूज़ ने 8 सितंबर 2022 को इस वीडियो क्लिप की पड़ताल की थी. हालांकि, ये वीडियो एक हफ्ते के भीतर फिर से वायरल हो गया, और दावा किया गया कि महाराष्ट्र में ग्रामीणों ने साधुओं को बच्चा अपहरणकर्ता समझ लिया और उनकी पिटाई कर दी. ये वीडियो अलग-अलग प्रमुख मीडिया आउटलेट्स ने दिखाया जिसके बाद ऑल्ट न्यूज़ ने इसकी पड़ताल की थी.

एक और वीडियो जिसमें भीख मांग रहे साधु से पूछताछ की गई और ग्रामीणों द्वारा उसे पीटा गया था. ये वीडियो भी बच्चा चोरी से संबंधित एक मामले के रूप में शेयर किया गया. पुलिस ने साफ़ तौर पर बताया कि ये बच्चा चोरी का मामला नहीं है. और कहा कि जनता को सावधानी बरतनी चाहिए और ऐसी अफवाहों पर ध्यान नहीं देना चाहिए.

अंग व्यापार की घटनाओं को दिखाने का दावा करने वाले ग्राफ़िक वीडियोज़

स्क्रिप्टेड वीडियो, अनवेरीफ़ाईड ऑडियो क्लिप या भीड़ को पीटने वाले साधु किसी बड़ी समस्या की सिर्फ छोटी सी झलक है. कई ऐसे ग्राफ़िक वीडियोज़ हैं जो बच्चे के अपहरण की घटनाओं के रूप में वायरल हैं. एक वीडियो क्लिप जिसमें तीन नाबालिगों के शव जमीन पर पड़े हैं और उनके आस-पास कुछ लोग रो रहे हैं. ये वीडियो भी इस दावे के साथ वायरल है कि एक ग्रुप को किडनी चुराते और बच्चों को मारते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया था.


ऑल्ट न्यूज़ ये पता नहीं लगा सका कि ये वीडियो कब और कहां लिया गया था. हालांकि, ऐसा लगता है कि तस्वीर शव के पोस्टमार्टम के बाद लिए गए हैं क्योंकि शव के बीच में ‘Y’ आकार का एक चीरा है और यहां तक ​​कि टांके (सर्जिकल धागे) भी दिखाई दे रहे हैं. हमने उन चिकित्सकों से बात की जो ये बता सकते हैं कि शव पोस्टमार्टम के बाद का है या नहीं. दावे से अलग, इस तरह के चीरे ‘किडनी ट्रांसप्लांट’ के दौरान नहीं किए जाते हैं.

एक ऐसी वीडियो क्लिप भी है जिसमें एक आदमी को एक पोल से बांधा हुआ है और उसकी आंत को काटा जा रहा है. इस क्लिप को बिना किसी कैप्शन के एक नाटकीय वीडियो के साथ शेयर किया जा रहा है जिसे देखकर दर्शकों को ऐसा लगेगा कि ये दोनों क्लिप संबंधित हैं.


ऑल्ट न्यूज़ ये पता नहीं लगा सका वो वीडियो कहां का है जिसमें व्यक्ति का शरीर कटा हुआ है. हालांकि, ये निश्चित है कि वीडियो में दक्षिण अमेरिका की भाषा सुनाई दे रही है. दक्षिण अमेरिका का एक दूसरा वीडियो भी अंग व्यापार/मानव तस्करी के वीडियो के रूप में वायरल है. ये क्लिप हाल ही में केरल में ‘लव जिहाद’ के मामले के रूप में भी शेयर की गई थी. ऑनलाइन थियरी के मुताबिक, ‘लव जिहाद’ एक ऐसी साजिश है जिसमें मुस्लिम पुरुषों को हिंदू महिलाओं को फंसाने और उन्हें इस्लाम में परिवर्तित करके शादी करने के लिए ट्रेनिंग दी जाती है.


ऑल्ट न्यूज़ ने 2019 में इस वीडियो क्लिप की पड़ताल की थी. उस वक्त इसे राजस्थान की एक घटना के रूप में शेयर किया गया था.

2017-2019 की तरह का पैटर्न

2018 में बीबीसी ने अंग्रेजी भाषा की लाखों रिपोर्ट्स की जांच में पाया कि 2017 और 2018 के बीच बच्चा चोरी की अफवाहों से संबंधित 23 घटनाओं में कम से कम 31 लोग मारे गए और दर्जनों लोग घायल हुए थे. ये भी देखा गया कि इनमें से हिंसक भीड़ द्वारा हमले के 20 मामले अप्रैल और जुलाई 2018 के बीच हुए थे.

जुलाई 2019 में मध्य प्रदेश में तीन स्थानीय कांग्रेस नेताओं को ग़लती से बच्चा अपहरणकर्ता समझ लिया गया और स्थानीय लोगों ने उनकी पिटाई कर दी. इंडियास्पेंड के डेटाबेस के आधार पर, 2017 और 2019 के बीच, 48 लोगों को बच्चा चोरी के शक के आधार पर पीट-पीट कर मार डाला गया.

नीलोत्पल दास और अभिजीत नाथ की मौत

जून, 2018 में असम के कार्बी आंगलोंग के एक गाँव में रास्ता पूछने के लिए रुकने पर ग्रामीणों ने नीलोत्पल दास और अभिजीत नाथ पर हमला किया और उनकी हत्या कर दी. रिपोर्ट किया गया है कि लिंचिंग से पहले कुछ हफ्तों में, ग्रामीणों ने फ़ेसबुक पर चेतावनी दी थी कि सभी को सावधान रहना चाहिए क्योंकि फ़ानकोडोंग (बच्चा चोरों के लिए कार्बी शब्द) उस एरिया में मौजूद थे.

स्क्रॉल से बात करते हुए, ज़िला पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “इस क्षेत्र में बच्चा चोरों के बारे में सोशल मीडिया पर एक अफवाह वायरल थी. और उस वक्त ये लड़के गांव में आए, उनसे पहले शायद कोई गांव में नहीं आया था. गाड़ी में दो म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स थे जिनमें लगभग पांच फुट लंबा खोखला पाइप और फ़्लैशी रंगों का एक ATC-[एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल ] के आकार का ड्रम था. ये दोनों ही ग्रामीणों के लिए पूरी तरह से विदेशी थे. उसके अलावा, वो रात में एक काली स्कॉर्पियो (SUV) से ट्रावल कर रहे थे यानी इस मामले में जितना भी ग़लत हो सकता था वो सब हो गया.”

ऊपर का पैटर्न बहुत कुछ वैसा ही है जैसा हमने 2022 में अब तक देखा है. 13 सितंबर को महाराष्ट्र के सांगली ज़िले में रिपोर्ट किया गया कि साधुओं का एक ग्रुप सोलापुर जाने के दौरान अपना रास्ता भटक गया था. वो एक SUV में यात्रा कर रहे थे. लवंगा गांव में एक लड़के से रास्ता पूछने के लिए वो रुके. लड़का कन्नड़ के अलावा कोई भाषा नहीं बोलता था जाहिर तौर पर उनकी शक्ल देखकर डर गया और चिल्लाने लगा. इसके बाद ग्रामीणों ने बीच बचाव कर साधुओं पर हमला बोल दिया. इसी तरह, 9 सितंबर को यूपी के कासगंज में दूरसंचार कर्मचारी एक SUV में यात्रा कर रहे थे जिनपर स्थानीय लोगों ने हमला कर दिया. हमने देखा है कि कुछ मामलों में स्थानीय लोग मानसिक रूप से विकलांग व्यक्तियों पर हमला करते हैं क्योंकि वो उनकी बात नहीं समझ पाते हैं.

हमलों का पैटर्न भी वैसा ही है जैसा कि अनवेरीफ़ाईड ऑडियो क्लिप और एडिट किए गए वीडियो में बताया गया है जिसका हमने स्टोरी की शुरुआत में ज़िक्र किया था. ऑडियो क्लिप में कहा गया, “बच्चे के अपहरणकर्ता साधु (ऋषि), कबाड़ीवाला (कबाड़ बेचने वाला), फकीर, फेरीवाला और भिखारी के वेष में होते हैं.” साथ ही रास्ता मांगने के लिए रुकने वाले लोगों से सतर्क रहने की भी बात कही गई.

सिर्फ कानून-व्यवस्था का मुद्दा नहीं

पहले भी पुलिस ने आम तौर पर लोगों से ऐसी अफवाहों पर ध्यान न देने का अनुरोध करते हुए वीडियो बनाकर इस खतरे से निपटने की कोशिश की है. 2019 में यूपी के DGP ने ट्विटर पर एक वीडियो शेयर कर लोगों से जागरूक होने और ऐसे फ़ॉरवर्ड्स के झांसे में न आने की अपील की थी. दूसरे राज्यों की पुलिस ने भी यही तरीका अपनाया. उन्होंने या तो सोशल मीडिया पर सार्वजनिक सुरक्षा जागरूकता पोस्ट की या मीडिया संगठनों से उनके मेसेज को फ़ैलाने में मदद करने का अनुरोध किया.

कुछ मामलों में पुलिस बाज़ार और अन्य भीड़-भाड़ वाले इलाकों में गई और अनाउंसमेंट करते हुए लोगों से कहा कि वो कानून अपने हाथ में न लें या बच्चे के अपहरण की अफवाहों को आगे न बढ़ाएं. ऐसी और भी क्लिप यहां देखी जा सकती है.

2022 में भी कानून प्रवर्तन का नज़रिया एक जैसा ही रहा है. मतलब एक गांव से दूसरे गांव, एक जगह से दूसरे जगह का दौरा करके जनता को सावधानी बरतने और कानून को अपने हाथ में न लेने के बारे में सूचित करने का काम करना. यूपी जैसे राज्यों (लिंक 1,लिंक 2,लिंक 3,लिंक 4) में पुलिस ने सोशल मीडिया पर भी लोगों से संयम बरतने का अनुरोध किया. ये सब वहीं है जो उन्होंने पहले भी किया था.


उत्तराखंड में 2022 में ये सुझाव दिया गया कि बच्चे के अपहरण की अफवाहों को शेयर करने वाले लोगों पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत आरोप लगाया जा सकता है. 2019 में यूपी पुलिस ने भी यही तरीका अपनाया था. उस वक्त उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह ने IANS को बताया था कि “अफवाह फ़ैलाने” में शामिल लोगों के खिलाफ़ NSA लगाया जाएगा. दिलचस्प बात ये है कि बच्चों के अपहरण की अफवाहों को शेयर करने के लिए लोगों पर NSA का आरोप लगाने का विचार भी 2022 में यूपी पुलिस द्वारा फिर से प्रस्तावित किया गया था.

पुलिस ने जिन्हें अपराधी माना है, उनमें से कई लोगों का मानना ​​है कि वो भी पीड़ित हैं. क्योंकि वो अफवाहों के शिकार हुए हैं. कोई ये तर्क दे सकता है कि जो लोग बच्चा चोरी की अफवाह के मामलों में परिणामी हमलों को कानून और व्यवस्था के मुद्दों के रूप में देखते हैं, वो इस बात पर गौर करें कि माता-पिता आसानी से इन अफवाहों के शिकार बन जाते हैं क्योंकि वो अपने बच्चों के जीवन और सुरक्षा के लिए डरते हैं. इसलिए सरकार की ओर से एक बड़ी पहल की ज़रूरत है जिसमें इस खतरे से लड़ने के लिए सामुदायिक जागरूकता कार्यक्रम को शामिल किया जा सकता है. वाराणसी के ग्रामीण इलाकों को देखने पर ये बात साफ हो जाती है. रिपोर्ट के मुताबिक, अपहरण की अफवाहों के चलते अभिभावकों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया है. वाराणसी पुलिस (ग्रामीण) द्वारा बार-बार ये बताने के बावजूद कि क्षेत्र में कोई बच्चा अपहरणकर्ता नहीं है और लोगों को ऐसी अफवाहों को भड़काना नहीं चाहिए.

कार्यप्रणाली के साथ सीमाएं

इस जांच में ऑल्ट न्यूज़ द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली की सीमा ये है कि हमें सोशल मीडिया मॉनिटरिंग के माध्यम से हिंदी या अंग्रेजी में की-वर्ड्स सर्च का इस्तेमाल करने पर ज़्यादातर मामले मिलें और इनमें से कुछ हिंसा के मामले भी थे. “वाक्यांशों के इस्तेमाल” के आधार पर कुछ राज्यों के लिए आउटपुट ज़्यादा हो सकता है. साथ ही और मामलों में कुछ नहीं भी दिख सकता है. इसी तरह मॉनिटरिंग के लिए, किसी न्यूज़ या अफवाहों को मॉनिटर किए जाने के आधार पर, एक राज्य में बच्चा चोरी पर हिंसा के ज़्यादा से ज़्यादा रिज़ल्ट सामने आ सकते हैं. मॉनिटर करने के लिए अलग एकाउंट्स का इस्तेमाल नहीं किया गया था. लेखक ने मॉनिटरिंग प्रक्रिया के लिए अपने निजी ट्विटर अकाउंट और ऑल्ट न्यूज़ की टिपलाइन का इस्तेमाल किया है.

 

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