बंगाल सरकार की ‘दुआरे राशन योजना’ क़ानूनी रूप से वैध नहीं: कलकत्ता हाईकोर्ट

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पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस सरकार ने नवंबर 2021 में दुआरे राशन योजना की शुरुआत की थी, जिसमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लाभार्थियों को उनके घर तक राशन पहुंचाने की व्यवस्था की गई है. हाईकोर्ट ने इसे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम का उल्लंघन बताया है.

(फोटो साभार: ट्विटर/खाद्य एवं आपूर्ति विभाग, पश्चिम बंगाल)

कोलकाता: कलकत्ता उच्च न्यायालय ने बुधवार को पश्चिम बंगाल सरकार की ‘दुआरे राशन योजना’ को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए)-2013 का उल्लंघन करार देते हुए कहा कि यह योजना कानून की नजरों में मान्य नहीं है.

उच्च न्यायालय ने यह फैसला उचित मूल्य के दुकानदारों द्वारा दाखिल याचिका पर सुनाया, जिन्होंने उसकी एकल पीठ के निर्णय को चुनौती दी थी. उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य सरकार द्वारा शुरू की गई इस योजना में कुछ भी गैर-कानूनी नहीं है.

जस्टिस चित्तरंजन दास और जस्टिस अनिरुद्ध रॉय की खंडपीठ ने ‘दुआरे राशन योजना’ को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम-2013 का उल्लंघन करार देते हुए कहा कि यह कानून की नजरों में मान्य नहीं है.

पीठ ने टिप्पणी की, ‘राज्य सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम में प्रभावी प्रावधान के अभाव में उचित मूल्य के दुकानदारों को लाभार्थियों के घर पर राशन पहुंचाने के लिए बाध्य कर अपनी सीमा का उल्लंघन किया है.’

अदालत ने कहा कि अगर लाभार्थियों के घर पर राशन पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम में संशोधन किया जाता है या राज्य सरकार को ऐसे अधिकार दिए जाते हैं, तभी राज्य की ओर से ऐसी योजना बनाई जा सकती है और उसे एनएफएसए के अनुरूप माना जा सकता है.

गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस सरकार ने नवंबर 2021 में दुआरे राशन योजना की शुरुआत की थी. इस योजना में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लाभार्थियों को उनके घर तक राशन पहुंचाने की व्यवस्था की गई है.

जस्टिस कृष्ण राव की एकल पीठ ने 16 जून को दिए फैसले में कहा था कि लाभार्थियों को उनके घर तक राशन पहुंचाने से जुड़ी राज्य सरकार की योजना के बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि योजना एनएफएस अधिनियम के किसी प्रावधान का उल्लंघन करती है.

उचित मूल्य के दुकानदारों ने एकल पीठ के इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय की खंड पीठ का रुख किया था.



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