देश में असहिष्णुता लंबे समय तक नहीं रहेगी, लोगों को मिलकर काम करना होगा: अमर्त्य सेन


नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कोलकाता में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि लोग अगर सहमत नहीं हैं या दूसरों की बात नहीं मानते हैं तो उन्हें पीटा जा रहा है. लोगों को मिलकर काम करना होगा. मतभेद दूर किए जाने चाहिए. हमें अपने बीच की दूरियों को कम करने की ज़रूरत है.

नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन. (फोटो: विकिमीडिया कॉमन्स)

कोलकाता: नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने रविवार को कहा कि भारत में वर्तमान में व्याप्त ‘असहिष्णुता का माहौल’ लंबे समय तक नहीं रहेगा और इसके खिलाफ लड़ने के लिए लोगों को एकजुट होना होगा.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, प्रख्यात अर्थशास्त्री ने अमर्त्य सेन शोध केंद्र में अपने नाना क्षितिमोहन सेन की ‘युक्त साधना’ की अवधारणा पर कोलकाता में प्रतीची ट्रस्ट द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान छात्रों, शिक्षकों और शोधार्थियों के साथ बातचीत करते हुए कहा, ‘यह स्थिति लंबे समय तक नहीं रहेगी. लोग अगर सहमत नहीं हैं या दूसरों की बात नहीं मानते हैं तो उन्हें पीटा जा रहा है. लोगों को मिलकर काम करना होगा. मतभेद दूर किए जाने चाहिए. हमें अपने बीच की दूरियों को कम करने की जरूरत है.’

एक छात्र के सवाल के जवाब में सेन ने कहा, ‘क्या विविधता हमेशा अच्छी होती है? हाल ही में भारत में विविधता आई है जो पहले नहीं थी. विविधता के फायदे और नुकसान, दोनों को देखने की जरूरत है.’

एक शिक्षक द्वारा यह पूछे जाने पर कि ‘हम देश की विविधता को कैसे बरकरार रख सकते हैं’, सेन ने महात्मा गांधी के शब्दों की याद दिलाते हुए कहा, ‘गांधी ने आजादी की लड़ाई के शुरुआती दौर में कहा था कि हमें अपने बीच की दूरियों को कम करना चाहिए. दूसरों का सम्मान करने की हमारी क्षमता कम होती जा रही है और यह एक कारण है कि हम पिछड़ रहे हैं.’

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, अमर्त्य सेन ने कार्यक्रम के दौरान कहा कि अलग-अलग दृष्टिकोणों का सम्मान करने की घटती क्षमता हमें एक राष्ट्र के रूप में वास्तव में प्रगति करने से पीछे रखने के लिए जिम्मेदार है. उन्होंने यह भी कहा कि सीएए लोगों को विभाजित करने का एक प्रयास था.

उन्होंने कहा, ‘हमें अपने मतभेदों को अलग रखना चाहिए और एक दूसरे के साथ संवाद करने पर जोर देना चाहिए.’

सेन ने कहा, ‘उल्लेखनीय बात यह है कि अक्सर एक-दूसरे का अनुसरण करने की हमारी क्षमता असाधारण रूप से सीमित होती है. हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं, जिसमें समझ बहुत सीमित है और यह अलग-अलग रूप ले सकती है. इस समय जो सामान्य है, वह धर्मों और जातियों के बीच भयानक गलतफहमी है. कुछ जातिगत अंतर समझ की कमी, निरक्षरता और अज्ञानता से आते हैं.’

उनकी इस बयान पर राजनीतिक दलों ने भी प्रतिक्रिया दी है.

तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद सुखेंदु शेखर रॉय ने कहा है, ‘हम उनके (अमर्त्य सेन) बयान का स्वागत करते हैं. वह वास्तव में उस स्थिति की आलोचना कर रहे हैं, जिसमें भाजपा पूरे देश को धर्म, जाति, लिंग और भाषा के आधार पर विभाजित कर रही है.’

माकपा के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम ने कहा, ‘उन्होंने एक सच्चे विचारक के तौर पर अपनी समझ जाहिर की. वह उस बहुलवाद और एकता की परंपरा के पथप्रदर्शक हैं, जिसे भारत ने रवींद्रनाथ टैगोर जैसों से पाया है.’

हालांकि, भाजपा नेता दिलीप घोष ने कहा, ‘वह एक अर्थशास्त्री हैं. लेकिन क्या उन्होंने अर्थव्यवस्था के बारे में कुछ कहा? सेन को भारत के बारे में सोचने की जरूरत नहीं है, जो अब विश्व स्तर पर मजबूत होकर उभरा है. लेकिन हां, बंगाल में हालात ऐसे लंबे समय तक नहीं रहने वाले हैं. मिस्टर सेन को पता होना चाहिए कि यहां बदलाव होगा.’

गौरतलब है कि अमर्त्य सेन पहले भी कई मौकों पर देश के मौजूदा हालातों को लेकर चिंता जता चुके हैं. जुलाई 2022 में उन्होंने कहा था कि राजनीतिक अवसरवाद के लिए लोगों को बांटा जा रहा है.

उन्होंने कहा था, ‘भारतीयों को बांटने की कोशिश हो रही है. राजनीतिक अवसरवाद के कारण हिंदुओं और मुसलमानों के सह-अस्तित्व में दरार पैदा की जा रही है.’

साथ ही, उन्होंने अफसोस जताया था कि राजनीतिक कारणों से लोगों को कैद करने की औपनिवेशिक प्रथा भारत को आजादी मिलने के दशकों बाद भी जारी है.

तब भी उन्होंने लोगों के एकजुट होने की बात कही थी.

सेन ने कहा था, ‘भारत केवल हिंदुओं का देश नहीं हो सकता. साथ ही अकेले मुसलमान भारत का निर्माण नहीं कर सकते. हर किसी को एक साथ मिलकर काम करना होगा.’

वहीं, इससे पहले एक अवसर पर उन्होंने कहा था कि देश में मौजूदा हालात डर की वजह बन गए हैं. तब भी उन्होंने लोगों से एकता बनाए रखने की दिशा में काम करने की अपील की थी.

उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता का आह्वान करते हुए कहा था, ‘भारत में सहिष्णुता की एक अंतर्निहित संस्कृति है, लेकिन वक्त की जरूरत है कि हिंदू और मुस्लिम एक साथ काम करें.’

दिसंबर 2022 में भी उन्होंने देश के मौजूदा हालातों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि भारत में चर्चा और असहमति की गुंजाइश कम होती जा रही है. मनमाने तरीके से देशद्रोह के आरोप थोपकर लोगों को बिना मुकदमे जेल भेजा रहा है.





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