ज्ञानवापी मामले ने धर्म की राजनीति को फिर जगाया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या के साथ खत्म करना चाहा था


वाराणसी की जिला अदालत ने पांच हिंदू महिलाओं की ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में उपासना करने की अर्जी मंजूर करके उस विवाद को हवा दे दी है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के अयोध्या फैसले के साथ हमेशा के लिए दफन कर देने की उम्मीद की थी. यानी उपसना स्थलों के धार्मिक चरित्र पर विवाद खत्म हो जाए. यह ऐसे वक्त में आया है, जब सुप्रीम कोर्ट में उपासना स्थल कानून, 1991 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका भी लंबित है.

वाराणसी अदालत के फैसले पर विपक्षी पार्टियों की चुप्पी उनकी उलझन को बताती है, जबकि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) खेमे की खुशी सब कुछ जाहिर कर देती है. बीजेपी ने इस पर कोई आधिकारिक रुख अख्तियार नहीं किया है, लेकिन उसके नेता अपनी खुशी छुपा नहीं पा रहे हैं. उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने ट्वीट किया, ‘करवट लेती मथुरा, काशी!’ मौर्य ने बाद में कहा कि वे पार्टी की ओर से नहीं बोल रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने उपासना स्थल कानून के खिलाफ अर्जी को सुनवाई के लिए मंजूर किया, और उसके बाद वारणसी और मथुरा अदालतों के फैसलों से यही उम्मीद है कि मंदिर-मस्जिद विवाद 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद भी राजनैतिक और चुनावी बहस का मुद्दा बना रहेगा.

इसी वजह से ज्ञानवापी मस्जिद मामला इस हफ्ते दिप्रिंट की सुर्खियों में सबसे ऊपर है.

सुप्रीम कोर्ट से अलग राह

सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2019 में अयोध्या फैसले में उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) कानून, 1991 के बारे में कहा था, ‘यह कानून हमारे इतिहास और राष्ट्र के भविष्य की बात करता है.’

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