‘चीते की गति’- बयान के मायने समझिए, राजनीतिक संदेश से भरा है मोदी का ‘पसंदीदा’ प्रोजेक्ट


नई दिल्ली: नामीबिया से आए आठ चीतों को शनिवार को मध्य प्रदेश स्थित कुनो राष्ट्रीय उद्यान के एक बाड़े में छोड़ने के कुछ ही घंटों बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली में नेशनल लॉजिस्टिक पॉलिसी (एनएलपी) का शुभारंभ किया और इस मौके पर उन्होंने कहा, ‘एक समय था जब कबूतर छोड़े जाते हैं. अब, चीतों की बारी है…हम चाहते हैं कि योजनाओं पर अमल चीते की गति से हो.’

मोदी का बयान परोक्ष रूप से जवाहरलाल नेहरू पर सियासी हमला था, जो अपने जन्मदिन (14 नवंबर) पर ‘शांति’ के प्रतीक के तौर पर कबूतर छोड़ते थे. नाम जाहिर न करने की शर्त पर भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, संदेश साफ था—पिछली सरकारों के उलट मोदी सरकार चीते की गति से नीतिगत निर्णय लेने में कतराती नहीं है.

दिल्ली में 17 सितंबर को आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मोदी ने चीते की वापसी को ‘पंच प्रण’ का प्रतिबिंब बताया, जिसकी घोषणा उन्होंने 15 अगस्त को थी. इसमें उन्होंने भारत के अतीत के गौरव को पुनर्जीवित करने और इसे औपनिवेशिक काल के साये से बाहर लाने की बात कही थी.

लेकिन चीते की वापसी राजनीतिक प्रतीकवाद के तौर पर अनुमान से कही ज्यादा भारी नजर आ रही है.

अब जब भाजपा शासित दो राज्यों गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं और एनडीए 2024 में अपना तीसरा कार्यकाल सुनिश्चित करने की कवायद में जुटा है, मोदी अपनी सरकार की ‘निर्णायक’ प्रशासन वाली छवि को और मजबूत करना चाहते हैं. और इसमें चीता एक उपयुक्त प्रतीक है जिसके जरिये मोदी सरकार विकास और बुनियादी ढांचे, हिंदुत्व पर जोर और उपनिवेशवाद के अतीत से बाहर लाने के वादे पर मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने में सफल हो सकती है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें