गृह या रक्षा मंत्रालय? किसके हाथों में हो असम राइफल्स की कमान, पूर्वोत्तर में कैसे खत्म होगी सेना की भूमिका


भारत में सबसे पहले बगावत ने 1950 के दशक के मध्य में उत्तर-पूर्व के राज्यों नागालैंड, मणिपुर और मिज़ोरम में अपना सिर उठाया था. बाद में यह असम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय में फैला. करीब सात दशकों से बड़े भूभाग में अलग-अलग तीव्रता से फैली बगावत के खिलाफ कार्रवाई करने की ज़िम्मेदारी केंद्रीय सुरक्षाबल, सेना और असम राइफल्स निभाते रहे हैं. अच्छी बात यह है कि अब उत्तर-पूर्व में बगावत की लहर कमजोर पड़ने के कारण राजनीति और सैन्य कार्रवाई से संबंधित माहौल में सुधार होने से सेना को बगावत विरोधी ज़िम्मेदारी से राहत मिल रही है. यह भूमिका अब मुख्यतः असम राइफल्स निभा रहा है और सेना को चीन से बढ़ते खतरे पर ध्यान देने के लिए मुक्त कर रहा है. 

यह ज़िम्मेदारी कम भले हुई हो मगर यह मान लेना भूल होगी कि रक्षा मंत्रालय के अधीन काम करने वाली सेना उत्तर-पूर्व में बगावत विरोधी कार्रवाई की ज़िम्मेदारी से पूरी तरह मुक्त हो गई है और 46 बटालियनों वाले असम राइफल्स के महानिदेशक (डीजी) ने इसकी पूरी ज़िम्मेदारी संभाल ली है. हकीकत यह है कि डीजी के पास केवल प्रशासनिक ज़िम्मेदारी है और वे गृह मंत्रालय के, जो उस पर प्रशासनिक नियंत्रण रखता है, गृह सचिव को रिपोर्ट करते हैं. ऑपरेशन की ज़िम्मेदारी सेना की ही है और असम राइफल्स की बटलियनें, ब्रिगेड और इंस्पेक्टर जनरल असम राइफल्स (आइजीएआर) उत्तर तथा दक्षिण मुख्यालय सेना के ही नियंत्रण में ऑपरेशन में भाग लेते हैं.    

असम राइफल्स पर रक्षा और गृह मंत्रालय का दोहरा नियंत्रण और कमांड कायम है, और यह मुख्य मुद्दा बना हुआ है. इसे सुलझाना न केवल बगावत विरोधी प्रयासों को मजबूती देने के लिए बल्कि भारत-म्यांमार सीमा की रखवाली की इसके ज़िम्मेदारी के लिए भी जरूरी है. इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि असम राइफल्स के अच्छे-खासे संसाधनों का सेना भी चीन से उभरे खतरे का सामना करने में इस्तेमाल कर सके. यह मकसद पूरा नहीं हो सका है क्योंकि रक्षा और गृह मंत्रालय आपसी मतभेदों को सुलझा नहीं पाए हैं और अफसोस की बात यह है कि इसे आपसी तकरार का बहाना बनाया जाता है. 

असम राइफल्स किसके अधीन रहे? 

असम राइफल्स को 1,643 किमी लंबी भारत-म्यांमार सीमा की रखवाली की ज़िम्मेदारी भी सौंपी गई है, जिस पर उसकी एक तिहाई बटालियन तैनात है. इस सीमा पर सामरिक तैनाती को लेकर रक्षा और गृह मंत्रालय के बीच आपसी मतभेद बने हुए हैं और कई प्रस्ताव रखे गए हैं जिनमें इस सीमा को बीएसएफ के सुपुर्द की जाए. इनमें से कई प्रस्ताव इन दोनों के बीच वर्चस्व की लड़ाई को ही उजागर करते हैं. अब जबकि चीन से खतरा बढ़ गया है तब शायद असम राइफल्स पर दोहरे नियंत्रण के मसले को सुलझाने की जरूरत ज्यादा महसूस होगी. 

इसलिए सवाल यह है कि असम राइफल्स पर नियंत्रण के मामले में राष्ट्रहित का तकाजा क्या है? 

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