गुजरात पुलिस को प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई का अधिकार देने वाले विधेयक को राष्ट्रपति की मंज़ूरी



गुजरात विधानसभा ने दंड प्रक्रिया संहिता (गुजरात संशोधन) विधेयक, 2021 पिछले वर्ष मार्च में पारित किया था.

विधेयक सीआरपीसी की धारा 144 के तहत जारी निषेधाज्ञा के उल्लंघन को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 188 (एक लोक सेवक द्वारा जारी आदेश की अवज्ञा) के तहत एक संज्ञेय अपराध बनाने का प्रावधान करता है.

आईपीसी की धारा 188 के तहत अधिकतम सजा छह महीने की कैद है.

यह सीआरपीसी की धारा 195 में संशोधन करता है, जिसमें कहा गया है कि संबंधित लोक सेवक की लिखित शिकायत के अलावा कोई भी अदालत लोक सेवकों के वैध अधिकार की अवमानना के लिए किसी आपराधिक साजिश का संज्ञान नहीं लेगी.

गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि दंड प्रक्रिया संहिता (गुजरात संशोधन) विधेयक, 2021 को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी है.

विधेयक के कथन और उद्देश्यों के अनुसार, गुजरात सरकार, पुलिस आयुक्त और जिला मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 144 के तहत निषेधात्मक आदेश जारी करने का अधिकार है, जिसके तहत किसी भी व्यक्ति को निर्दिष्ट कार्य से दूर रहने या विभिन्न अवसरों पर सार्वजनिक शांति भंग होने या दंगा रोकने या सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए निर्देश दिया जा सकता है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, इसमें कहा गया है कि इस तरह की ड्यूटी पर तैनात पुलिस अधिकारियों के सामने उल्लंघन की घटनाएं आती हैं और आईपीसी की धारा 188 के तहत उल्लंघन करने वालों के खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई करने की जरूरत है.

हालांकि सीआरपीसी, 1973 की धारा 195, ऐसे आदेश जारी करने वाले लोक सेवक के लिए उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ शिकायतकर्ता होना अनिवार्य बनाती है, जिससे उल्लंघनों का संज्ञान लेने में बाधा उत्पन्न होती है. धारा 195 (1) (ए) (ii) सीआरपीसी क्षेत्राधिकारी अदालतों को संबंधित लोक सेवक की लिखित शिकायत को छोड़कर अपराधों का संज्ञान लेने से रोकता है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)





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