कहीं कमरे नहीं तो कहीं दरी पर बैठने को मजबूर छात्र, बिहार में शिक्षक बनने को लेकर इतना संघर्ष क्यों


पटना: बिहार के सुपौल जिला के करिहो पंचायत के रहने वाले सुनील कुमार लगभग 9 साल पहले राज्य शिक्षक पात्रता परीक्षा पास कर चुके हैं. 2012 में इसी परीक्षा को पास करने की वजह से उनकी शादी भी हुई थी लेकिन आज वो एक बड़े सीमेंट दुकान पर काम करने को मजबूर हैं.

सुनील बताते हैं, ‘पूरे गांव समाज में मजाक बनकर रह गया हूं. सरकार चाहती ही नहीं है कि हमारी नियुक्ति हो.’

बिहार के लगभग गांवों में एक न एक सुनील मिल ही जाएगा.

2019-20 की एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार बिहार में छात्र-शिक्षक अनुपात देश में सबसे खराब है. प्राथमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों में छात्र-शिक्षक अनुपात 50 और 60 से ज्यादा है. संसद में हुई एक बहस के दौरान भी बताया गया था कि ‘समग्र शिक्षा अभियान’ के तहत बिहार में 5.92 लाख प्राथमिक शिक्षकों के पद की स्वीकृति दी गई, जिसमें 2.23 लाख रिक्त हैं.

पटना के पुणइ चक इलाके में तैयारी कर रहे समस्तीपुर के 27 वर्षीय निशांत बताते हैं कि बिहार में शिक्षक नियुक्ति होने के बाद भी अपने अधिकारों के संघर्ष के लिए लड़ते रहते हैं. 90 के दशक वाले शिक्षक को जो सुविधा उपलब्ध कराया जाता था वह आज के शिक्षकों को नहीं मिलता. बिहार सरकार के भाषा में इन शिक्षकों को नियोजित शिक्षक कहते हैं.

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