कभी बेकरी पर धोते थे बर्तन, ठेले पर बेचे डोसे, अब देश-विदेश में करोड़ों का कारोबार


हाइलाइट्स

प्रेम गणपति साल 1990 में मुंबई नौकरी की तलाश में आए.
दोस्‍त के दगा देने के कारण उन्‍हें एक बेकरी में बर्तन मांजने पडे.
दो साल बाद 1000 रुपये लगाकर ठेले पर डोसे बेचना शुरू किया.

नई दिल्ली. तमिलनाडु के रहने वाले प्रेम गणपति को उनका दोस्‍त 1200 रुपये महीने की नौकरी दिलाने का झांसा देकर मुंबई लाया. लेकिन, रेलवे स्‍टेशन पर ही वह गणपति की जेब से सारे पैसे उड़ाकर फुर्र हो गया. अनजान शहर, न भाषा समझ आए और वापस जाने के लिए जेब में पैसे भी नहीं. गणपति के लिए चारों ओर मुश्किलें ही मुश्किलें थीं. कुछ घंटे रेलवे स्‍टेशन पर बिताने के बाद उन्‍होंने वापस घर न जाने का फैसला किया और चल पड़े मुंबई की अनजान गलियों में अपना भविष्‍य तलाशने. घर वापस न जाने के उनके इसी फैसले और कठिन परिश्रम ने किस्‍मत खोल दी. आज वे मशहूर डोसा चेन डोसा प्‍लाजा के मालिक हैं. कभी खुद ढाबे पर बर्तन धोने वाले गणपति अब हजारों लोगों को देश-विदेश में रोजगार दे रहे हैं.

प्रेम गणपति का जन्म तमिलनाडु के नागलपुरम में हुआ था. वे सात भाई-बहन थे और उनका परिवार बेहद गरीबी में जीवन-यापन करता था. 10वीं तक ही पढ़ाई करने के बाद गणपति चेन्‍नई आ गए और छोटी-मोटी नौकरी करने लगे. उनकी पगार केवल 250 रुपये महीना थी. इनमें से ज्‍यादातर पैसे वो अपने घर भेज दिया करते. चेन्‍नई में उनकी दोस्‍ती एक शख्‍स के साथ हुई. उसने गणपति को मुंबई में 1200 रुपये महीने की नौकरी दिलाने का झांसा दिया. उसकी बातों में आकर गणपति मुंबई उसके साथ आ गए.

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बेकरी पर मांजने पड़े बर्तन
गणपति अपने एक दोस्त के साथ मुंबई चले आए. रेलवे स्‍टेशन पर ही दोस्‍त धोखे से उनके पैसे उड़ाकर चला गया. वे कई घंटे बांद्रा रेलवे स्टेशन पर उसका इंतजार करते रहे. वो नहीं लौटा. गणति के साथ दिक्कत ये थी कि यहां कोई उनका परिचित भी नहीं था और उन्‍हें मराठी और हिन्‍दी भी नहीं आती थी. लेकिन, उन्‍होंने मुंबई में ही टिकने का मन बनाया. माहिम में वो एक बेकरी पर पहुंचे और काम देने की गुजारिश की. बेकरी वाले ने उन्‍हें डेढ़ सौ रुपये महीना पगार पर बर्तन धोने का काम दिया. कुछ दिन बाद उन्‍होंने पास के ही एक ढाबे पर डोसा बनाना भी शुरू कर दिया. इससे उन्‍हें थोड़े ज्‍यादा पैसे मिलने लगे.

ठेले से शुरू किया बिजनेस
कई साल नौकरी करने के बाद गणपति ने 1992 में अपना काम शुरू किया. उन्‍होंने एक ठेला किराए पर लिया और 1000 रुपये लगाकर इडली और डोसा बेचना शुरू किया. अपने दो भाईयों को भी उन्‍होंने मुंबई बुला लिया. गणपति डोसा बनाने में उस्‍ताद थे. जल्‍द ही उनकी चर्चा पूरे इलाके में होने लगी और धंधा चल निकला.

1997 में खोला रेस्‍टोरेंट
गणपति 20 तरह के डोसे बनाते थे. नए-नए डोसे खाने के लिए लोगों की भीड़ लगने लगी. कमाई बढ़ी तो 1997 में गणपति और उनके भाइयों ने मुंबई के वाशी इलाके में एक छोटी सी जगह लीज पर ली और वहां अपना रेस्‍टोरेंट खोला. उसका नाम प्रेम सागर डोसा प्लाजा रखा. 2002 तक उनका आउटलेट बहुत लोकप्रिय हो गया.

अब देश-विदेश में आउटलेट
प्रेम गणपति एक रेस्‍टोरेंट से खुश नहीं थे. उन्‍होंने धीरे-धीरे अपना व्‍यापार बढ़ाना शुरू किया और फ्रेंचाइची मॉडल अपनाया. आज डोसा प्‍लाजा के देश के 50 से ज्‍यादा शहरों में आउटलेट हैं. यही नहीं न्‍यूजीलैंड में तीन और आस्‍ट्रेलिया में भी डोसा प्‍लाजा के 2 आउटलेट खुल चुके हैं. डोसा प्‍लाजा की वेबसाइट के अनुसार, जल्‍द ही डोसा प्‍लाजा आउटलेट दुबई में भी खुलने वाला है.

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