कभी कॉलेज का छात्र, अब एक सफल वकील- कैसे आक्रोश ने इस मुस्लिम युवक को बनाया ‘PFI का सदस्य’


नई दिल्ली: राजस्थान के अपने गृह नगर स्थित एक रेस्टोरेंट में बैठा 18 वर्षीय एक छात्र भारत की सांप्रदायिक स्थिति पर एक तीखी चर्चा सुना रहा है, मुसलमानों की स्थिति के बारे में जानकर उसका आक्रोश और बढ़ने लगता है. और वह अपने समुदाय के लिए कुछ करने के लिए व्यग्र हो उठता है. उसने जो कुछ सुना, उसी ने उसे एक ऐसे संगठन का वालंटियर बनने को प्रेरित कर दिया जिसके बारे में वह तब तक कुछ जानता भी नहीं था—और वह संगठन था पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई). केंद्र सरकार ने बुधवार सुबह इसी सगंठन को कथित जिहादी आतंकवाद से लिंक के कारण प्रतिबंधित किया है.

अब सात साल बाद, राजस्थान का वह छात्र नई दिल्ली में एक सफल वकील बन चुका है, लेकिन पीएफआई में सक्रिय रहता है. उसने चाय की चुस्कियां लेते हुए कहा, ‘हमें पता था कि यह दिन आएगा. मैं तो यही सोच रहा हूं कि उन्होंने अभी तक मुझे क्यों नहीं उठाया. जितने लोगों को मैं जानता हूं उसमें से कोई नहीं बचा है.’

पीएफआई में शामिल होने की शर्तें ऐसी नहीं थीं जो किसी सामान्य किशोर को आकर्षित कर सकें. उस समय यानी 2015 में पीएफआई के जिला अध्यक्ष ने अब वकील बन चुके इस छात्र को बताया था कि सदस्यों को शराब, तंबाकू उत्पादों के सेवन, विवाह पूर्व यौन संबंध आदि की अनुमति नहीं होगी. इसके अलावा सदस्यों को पाक-साफ, पांच वक्त की नमाज पढ़ने वाला होना चाहिए और उनके लिए दहेज जैसी सामाजिक बुराइयों से दूरी बनाना भी जरूरी होगा.

वकील ने बताया, ‘मैं पहले से ही एक अच्छा मुसलमान था, इसलिए उन्होंने मुझे तुरंत शामिल कर लिया, और अब सात साल हो चुके हैं. कोई सदस्यता कार्ड नहीं दिया गया था, केवल संगठन के नियम-कायदों से जुड़ी एक बुकलेट दी जाती है.’

वकील ने कहा कि महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग जगहों, संगठनों और सभाओं की ‘मुस्लिम परंपरा’ के मद्देनजर पीएफआई में केवल पुरुष सदस्य ही हैं. हालांकि, इसकी एक महिला विंग है जिसे राष्ट्रीय महिला मोर्चा कहा जाता है. साथ ही कई अन्य संबद्ध संगठन जैसे रिहैब इंडिया फाउंडेशन, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया इमाम काउंसिल, नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन, जूनियर फ्रंट और एम्पावर इंडिया फाउंडेशन आदि भी हैं. इन सभी को अगले पांच वर्षों के लिए ‘गैरकानूनी’ घोषित किया गया है.

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