एनजीटी ने पर्यावरण नियमों के उल्लंघन के लिए राजस्थान सरकार पर 3,000 करोड़ का जुर्माना लगाया

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राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने राजस्थान सरकार को ठोस और तरल कचरे के अनुचित प्रबंधन के लिए पर्यावरण संबंधी मुआवजे के रूप में 3,000 करोड़ रुपये का भुगतान करने को कहा है. वहीं, उत्तर प्रदेश सरकार को तरल कचरे के अपर्याप्त प्रबंधन के लिए सौ करोड़ रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया है.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने राजस्थान सरकार को ठोस और तरल कचरे के अनुचित प्रबंधन के लिए पर्यावरण संबंधी मुआवजे के रूप में 3,000 करोड़ रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया है.

एनजीटी अध्यक्ष जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने प्रदूषण में योगदान और अपने संवैधानिक कर्तव्यों के निर्वहन में नाकाम रहने के लिए राज्य के अधिकारियों को जवाबदेह ठहराया है.

पीठ में जस्टिस सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए. सेंथिल वेली भी शामिल थे.

उसने कहा, ‘चूंकि, उच्चतम न्यायालय और अधिकरण के पहले के आदेशों के तहत जल प्रदूषण की रोकथाम और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए दी गई समयसीमा समाप्त हो गई है, इसलिए ‘प्रदूषक भुगतान’ सिद्धांत को एक जनवरी 2021 से लागू किया जाना है और पर्यावरण को हुए नुकसान व प्रबंधन की लागत के बराबर मुआवजा लगाया जाना है.’

पीठ ने कहा, ‘भविष्य में लगातार जारी क्षति को रोकने और पिछले नुकसान की भरपाई करने की जरूरत है.’

हरित पैनल ने 1,250 मिलीलटर प्रति दिन (एमएलडी) तरल अपशिष्ट या सीवेज के निस्तारण में कमी के लिए मुआवजे का निर्धारण 2,500 करोड़ रुपये के रूप में किया.

पीठ ने कहा, ‘वैज्ञानिक रूप से ठोस कचरे का प्रबंधन करने में विफलता के मद में कुल मुआवजा 555 करोड़ रुपये है.’

उसने कहा, ‘कुल मुआवजा 3,000 करोड़ रुपये पूर्णांकित किया गया है, जो राजस्थान सरकार द्वारा दो महीने के भीतर एक अलग खाते में जमा किया जा सकता है, जिसका संचालन मुख्य सचिव के निर्देश के अनुसार किया जाएगा और जिसका इस्तेमाल नुकसान की भरपाई के उपायों पर होगा.’

पीठ ने कहा कि सीवेज प्रबंधन के संबंध में नुकसान की भरपाई के उपायों में सीवेज निस्तारण और उपयोग प्रणाली स्थापित करना तथा मौजूदा सीवेज प्रबंधन प्रणालियों व उनकी संचालन व्यवस्था का उन्नयन करना शामिल है, ताकि उनकी पूरी क्षमता का उपयोग सुनिश्चित किया जा सके.

एनजीटी ने कहा कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए निष्पादन योजना में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के दिशा-निर्देशों के तहत जैव-उपचार प्रक्रिया के निष्पादन के साथ-साथ आवश्यक अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्रों की स्थापना करना और 161 साइटों का उपाय करना शामिल होगा.

पीठ ने आगे कहा कि नुकसान की भरपाई से जुड़ी दोनों योजनाओं को समयबद्ध तरीके से राज्यभर में तुरंत क्रियान्वित करने की आवश्यकता है और यदि उल्लंघन जारी रहता है तो अतिरिक्त मुआवजा तय करने पर विचार किया जाएगा.

पीठ ने कहा, ‘अनुपालन मुख्य सचिव के जिम्मे होगा. इसके अलावा, मुख्य सचिव द्वारा सत्यापन योग्य प्रगति पर छह मासिक प्रगति रिपोर्ट दायर की जाएंगी. रिपोर्ट की एक प्रति इस अधिकरण के रजिस्ट्रार जनरल को भी सौंपी जाएगी.’

तरल अपशिष्ट के अपर्याप्त प्रबंधन पर यूपी सरकार को सौ करोड़ रुपये देने का निर्देश

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश सरकार को प्रतापगढ़, रायबरेली और जौनपुर जिलों में तरल कचरे के अपर्याप्त प्रबंधन के लिए 100 करोड़ रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया है.

एनजीटी के अध्यक्ष जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार जैव उपचार से प्रदूषण के स्तर में कमी नहीं आई है.

पीठ ने कहा कि वित्तपोषण की व्यवस्था करने के लिए निर्धारित की गई समय-सीमा काफी पहले समाप्त हो गई थी और उपचारात्मक कार्रवाई नहीं की गई.

पीठ ने कहा कि स्पष्ट है कि इस तरह की चूक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और जल प्रदूषण के कारण जल जनित बीमारियां होती हैं जो कई बार घातक भी होती हैं.

हरित निकाय ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि भविष्य के लिए धन आवंटित किया गया है और कहा गया है कि आने वाले समय में प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन सवाल पिछले उल्लंघनों के लिए जवाबदेही को लेकर है.

पीठ ने कहा कि 31 अक्टूबर 2022 तक मलजल शोधन संयंत्र (एसटीपी) स्थापित करने के बारे में संबंधित अधिकारियों की दलीलों को स्वीकार भी कर लिया जाए लेकिन सीवेज और नालियों को एसटीपी से नहीं जुड़ने के कारण यह स्वीकार करना मुश्किल है कि प्रदूषण को नियंत्रित कर लिया जाएगा.

पीठ ने छह महीने के भीतर कार्रवाई की रिपोर्ट अधिकरण के रजिस्ट्रार जनरल के पास दायर करने को कहा.

अधिकरण प्रतापगढ़, रायबरेली और जौनपुर जिलों में सई नदी में मलजल के प्रवाहित होने के संबंध में एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था.

बता दें कि बीते 11 सितंबर को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने महाराष्ट्र सरकार को ठोस और तरल अपशिष्ट का ठीक से प्रबंधन नहीं करने के लिए पर्यावरण मुआवजे के रूप में 12,000 करोड़ रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया था.

एनजीटी ने कहा था कि अपशिष्ट प्रबंधन में कमियों के कारण पर्यावरण को लगातार हो रहे नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए महाराष्ट्र सरकार को मुआवज़ा देने का आदेश देते हुए कहा है कि यदि उल्लंघन जारी रहा तो राज्य के ख़िलाफ़ अतिरिक्त हर्जाना लगाने पर विचार किया जा सकता है.

इस महीने की शुरुआत में ही एनजीटी ने पश्चिम बंगाल सरकार पर भी 3,500 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था. एनजीटी ने कहा था कि बंगाल सरकार सीवेज और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाओं की स्थापना को प्राथमिकता देती नजर नहीं आ रही है.

पीठ ने कहा था कि स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों को लंबे समय के लिए टाला नहीं जा सकता. साथ ही, उन्होंने स्पष्ट किया था कि प्रदूषण मुक्त वातावरण प्रदान करना राज्य और स्थानीय निकायों की संवैधानिक जिम्मेदारी है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)



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