आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम 2022 : पुलिस को मिले नए अधिकारों पर विपक्ष की क्या है चिंता


20 सितंबर को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम 2022 के तहत उन नियमों को अधिसूचित कर दिया है जो पुलिस को अपराधों में लिप्त दोषियों के शारीरिक और जैविक नमूने प्राप्त करने का अधिकार देता है. 

इस कानून के तहत पुलिस वाले आपराधिक मामलों में जांच के लिए दोषियों और बंदियों के फिजिकल और बायोलॉजिकल नमूने ले सकेंगे. इसके साथ ही ये कानून मजिस्ट्रेट को किसी अपराध की जांच में सहायता के लिए किसी शख्स के माप या तस्वीरें लेने का आदेश देने का भी अधिकार देता है. आखिर इस विधेयक में ऐसा क्या है? जिसका विपक्ष ने संसद में विरोध किया. तो आइए जानते हैं कि आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम, 2022 क्या है?

कानून में क्या है?
इस कानून के मुताबिक, एक अधिकृत व्यक्ति जो पुलिस अधिकारी, केंद्र या फिर राज्य सरकार का जेल अधिकारी भी हो सकता है. अधिकृत अधिकारी को आरोपियों के उंगलियों के निशान, हथेली के निशान, पैरों के निशान, फोटो, आइरिस, रेटिना स्कैन, फिजिकल, बायोलॉजिकल नमूने और उनका विश्लेषण, व्यवहार संबंधी विशेषताएं, दस्तखत, लिखावट या दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 53 या धारा 53 ए में संदर्भित किसी अन्य जांच से संबंधित माप ले सकता है.

वहीं इस कानून में बताया गया है कि ऑथराइज्ड यूजर या माप लेने में कुशल कोई भी शख्स, सर्टिफाइड डॉक्टर या इस तरह से ऑथराइज्ड कोई अन्य शख्स किसी आपराधिक मामले में गिरफ्तार व्यक्ति का माप ले सकता है, लेकिन इसके लिए कम से कम एसपी रैंक के अफसर से लिखित में मंजूरी लेना जरूरी है.

बता दें कि आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम 2022 लोकसभा में 4 अप्रैल 2022 और राज्य सभा में 6 अप्रैल 2022 को पारित किया गया. राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद इसे 18 अप्रैल 2022 को आधिकारिक रूप से लागू कर दिया गया. 

पुराने कानून में क्या था?
वहीं अब तक के अपराधियों की पहचान और उनसे जुड़े केस के मामले ‘द आइडेंटिफिकेशन ऑफ प्रिजनर्स एक्ट 1920’ लागू था. यह कानून पुराना और अंग्रेजों के जमाने का था, जबकि इस पुराने कानून की अपनी सीमाएं भी हैं. इस कानून के तहत अपराधियों के केवल फिंगर और फुटप्रिंट लेने की अनुमति देता है. इसके अलावा मजिस्ट्रेट के आदेश के बाद फोटो लिए जा सकते हैं. 

नया कानून ‘द आइडेंटिफिकेशन ऑफ प्रिजनर्स एक्ट 1920’ की जगह ले लेगा. नए कानून के आने से किसी भी मामले में दोषी और गिरफ्तार किए गए आरोपी की पहचान के लिए अधिकारी हर तरह की माप ले सकता है. 

क्या है विरोध
लोकसभा में नए आपराधिक बिल को पेश करते समय जमकर हंगामा हुआ था. विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने बिल पर आपत्ति जताई थी. विपक्षी नेताओं का कहना है कि यह बिल संविधान के आर्टिकल 21 का उल्लंघन करता है. विपक्ष का यह भी कहना है कि इससे भारतीय नागरिकों की स्वतंत्रता, गोपनियता के मौलिक अधिकार सहित मानवाधिकारों का भी उल्लंघन होगा.  

हालांकि, गृहमंत्री अमित शाह ने स्पष्ट करते हुए लोकसभा में बताया था कि शांति भंग करने की आशंका और राजनीतिक विरोध के केस में हिरासत में लिए गए लोगों को इस अधिनियम के दायरे से बाहर रखा जाएगा.  

 

1920 में आए कानून की जगह लेगा
दरअसल, इस अधिनियम ने कैदियों की पहचान अधिनियम, 1920 की जगह ली है. इसमें ये भी बताया गया है कि एनसीआरबी दोषियों का माप लेने के लिए एक एसओपी जारी करेगी. इसमें इस्तेमाल होने वाले उपकरण, फॉर्मेट, माप डिजिटल होगा या फिजिकल, राज्य और केंद्र शासित प्रशासन माप को कैसे स्टोर और हैंडल करेगा, माप के लिए इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी सिस्टम आदि की जानकारी होगी.

ऐसे में माप न देना अपराध होगा
अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि अगर कोई शख्स, जिसका माप कानून के तहत लिया जाना है, वह मना करता है, तो ऑथराइज्ड शख्स कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर, 1973 (1972 का 2) के तहत माप ले सकता है. अधिनियम के तहत विरोध करना या डेटा देने से इनकार करना एक लोकसेवक को उसकी ड्यूटी करने से रोकने का अपराध माना जाएगा.

75 सालों तक डेटा सुरक्षित
नए आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम में ये भी कहा गया है कि अपराधियों का डेटा 75 वर्षों तक सुरक्षित रखा जा सकता है. वहीं कानून में मेंशन है कि डेटा को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की होगी. लोकसभा में विधेयक पेश करते हुए गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी ने कहा था कि कानून से अपराधियों की पहचान आसान हो जाएगी और जांच ज्यादा तेज हो पाएगी. इससे कोर्ट में अभियोजन और दोष साबित करने का रेट भी बढ़ेगा.  

इंस्पेक्टर के अलावा हेड कॉन्सटेबल भी लेंगे रिकॉर्ड
आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम, 2022 के तहत पुलिस स्टेशन के इंचार्ज इंस्पेक्टर के अलावा हेड कॉन्सटेबल या फिर उससे ऊपर रैंक के अधिकारी अपराधियों का डेटा संग्रह कर सकेंगे. इसमें जेल के वार्डन भी सैंपल ले सकेंगे. इसके अलावा कानून कहता है कि प्रथम श्रेणी स्तर के न्यायिक मजिस्ट्रेट, आरोपियों और दोषियों के डेटा इकट्ठा करने के आदेश देगें. 

 



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